अमीर ने वसीयत लिखी (Kahani)

June 1987

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न्यूयार्क (अमेरिका) में एक अमीर ने वसीयत लिखी जो उसकी मृत्युपरान्त पढ़ी गई। वसीयत सुनकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि वसीयत विचित्र व रोचक थी। इसमें परिवार के सयाने सदस्यों चालाक ड्राइवरों, चोर नौकरों के कारनामों का वास्तविक विवरण भी था।

उसने पत्नी को मात्र एक डॉलर की राशि देते हुए वसीयत में लिखा “पत्नी ने मुझे जीवन भर बुद्धू समझा उसकी लालची निगाहें मेरी सम्पत्ति पर ही लगी रही। मेरे सुख दुःख में कभी भी हाथ तक न बटाया। किन्तु न मैं बुद्धू था न मूर्ख।”

इकलौते आवारा, हरामखोर पुत्र के लिए वसीयत में मात्र इतना ही लिखा। “तुम्हें पसीने की गाढ़ी कमाई का एक भी धेला देने का अर्थ होगा कि मैं भी तुम्हारी हरामखोरी और आवारागर्दी से सहमत था।”

बेटी जिसने पिता की बुढ़ापे में देखभाल सेवा सुश्रूषा की, उसके नाम एक लाख डॉलर की राशि देते हुए लिखा “मेरे दामाद ने केवल एक ही समझदारी की कि मेरी पुत्री से विवाह किया। अपने दामाद के निकम्मेपन को देखते हुए उक्त राशि बेटी के नाम कर रहा हूँ जिससे उसका भविष्य सुरक्षित बना रहे।”

“वसीयत में खटारा कारें ड्राइवरों को जानबूझ कर दे रहा हूँ क्योंकि इनकी चालाकी से हमेशा नये पुर्जों की जगह पुराने पुर्जे ही डाले जाते रहे और रकम बीच में डकारी जाती रही। अब ये खटारा कारें जीवन पर्यन्त इनका भी सिरदर्द बनी रहेंगी। इनकी बेईमानी और हेरा फेरी फिर फिर कर इन्हें ही सालती रहेगी।”

“पुराने बर्तन, कपड़े आदि नौकरों, चाकरों को इसलिए सौंपे जा रहा हूँ जिससे इन्हें भविष्य में अपने मालिकों के यहाँ से न चुराने पड़ें।”


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