स्वामी विवेकानन्द (kahani)

June 1987

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स्वामी विवेकानन्द बनारस की एक संकरी गली से जा रहे थे। रास्ता घेरे बन्दरों का एक झुण्ड बैठा था।

स्वामी जी डरे और भागकर लौटने लगे। बन्दरों ने पीछा किया। कपड़ा फाड़ दिया और कई जगह काट दिया।

चीख पुकार सुनकर गली का गृहस्थ बाहर निकला उसने कहा-भागो मत, सामना करो, कुछ नहीं तो घूँसा तान कर इनकी ओर बढ़ो।

स्वामी जी ने वैसा ही किया। बन्दर ठिठके और धीरे-धीरे इधर-उधर बिखर गए।

विवेकानन्द ने समझा कि कठिनाइयों से डरना, भागना व्यर्थ है। उससे जूझने के लिए हिम्मत के सहारे आगे बढ़ना चाहिए।


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