आचार्य रामानुज मन्त्र पाठ करते हुये मन्दिर की प्रदक्षिणा कर रहे थे कि वहाँ एक चाण्डाल स्त्री उनकी परिक्रमा के बीच में आ गई, आचार्य रामानुज ठिठक कर रुक गये। उनका वेद पाठ खण्डित हो गया क्रोधपूर्वक बोले-अरी चाण्डालिन! मेरे रास्ते से हट जा मेरी प्रदक्षिणा अपवित्र न कर?
चाण्डाल स्त्री हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गई और पूछने लगी भगवान मेरे चारों और पवित्रता ही पवित्रता व्याप्त है? कृपया बतला दीजिये कि मैं अपनी पवित्रता लेकर किस और कहाँ चली जाऊँ? स्वामी रामानुज आचार्य को उसके कथन से मानो ज्ञान मिल गया-हाथ जोड़कर बोले-माँ! मुझे क्षमा करो तुम निश्चय ही पवित्रात्मा हो।