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Akhand Jyoti
Year 1987
Version 2
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June 1987
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धन की नहीं यश की रक्षा करो। लोगों की आँखों में गिर जाने के उपरान्त तुम गये गुजरे गरीब बन जाते हो।
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Page Titles
ईश्वर का दर्शन-पवित्र अन्तःकरण में
यहाँ न्याय है, अन्याय नहीं
व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत्चेतन धन आनन्द राशि
भक्त भाव विभोर होकर (Kahani)
जीवन- ईश्वर का एक अनुपम अनुदान
सम्राट अशोक का साहस (Kahani)
सच्चा श्राद्ध
वैष्णव की करुणाभरी आत्मीयता
सृष्टि रचना के उपरान्त (Kahani)
यह दलाली कोई घाटे का सौदा नहीं
साधु और डाकू (Kahani)
अपने भाग्य का विधाता स्वयं मनुष्य
काट गिराने का निश्चय किया (Kahani)
राजयोग के प्रारम्भिक अनुशासन
स्वामी विवेकानन्द (kahani)
चेतना की उदात्तीकरण प्रक्रिया
अमीर ने वसीयत लिखी (Kahani)
प्रत्यक्ष साधना और प्रत्यक्ष सिद्धि
साधु के पास जाया करता (Kahani)
स्थूल से गुँथी सूक्ष्म शरीर की सत्ता
कुरुक्षेत्र में रणभेरियाँ (Kahani)
प्राणतत्व के उभार की चमत्कारी परिणति
आचार्य रामानुज (kahani)
चेतना के महासागर में दबी विलक्षण संभावनाएँ
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व्यक्तित्व के विकास का उद्गम केन्द्र
मनःक्षेत्र के खरपतवार उखाड़ें
अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
कुण्डलिनी का उर्ध्वगमन
समाज सेवी रविशंकर (Kahani)
प्राणविद्युत के संवर्धन से तेजोवलय का अभिवर्धन
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सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय
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अन्तरिक्ष वासी पृथ्वी पर आते रहें
संगीत को शालीनता की दिशा मिले
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वनौषधियाँ चमत्कार क्यों नहीं दिखातीं?
वन विहार में रास्ता (Kahani)
हँसे तो दिल खोलकर
पर्व त्यौहारों की उद्देश्यपूर्ण परम्परा
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ज्ञान और विज्ञान के शक्ति स्रोत- गायत्री और यज्ञ
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महायज्ञों द्वारा वायुमण्डल और वातावरण का परिशोधन
धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए (Kahani)
गायत्री-माहात्म्य
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सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन-2
उसी घाट पर एक घड़ियाल (Kahani)
उपवास रोग निवारक भी! शक्तिवर्धक भी!
महाराज प्रद्युम्न का शरीर (Kahani)
शान्तिकुँज का एकेडमी में परिवर्तन नूतन गतिविधियों का शुभारम्भ एवं विस्तार
आत्मा से (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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