उन दिनों तुर्की और ईरान में लड़ाई चल रही थी। तुर्की हारते हुए पीछे लौटे किन्तु ईरान के सूफी सन्त फरीदुद्दीन को अपने साथ पकड़ ले गये और उन्हें मृत्यु दण्ड सुना दिया।
इस समाचार से प्रत्येक ईरानी को बहुत दुख हुआ। जनता पक्ष ने तुर्की के पास समाचार भेजा कि सन्त को छोड़ दें और उनके वजन के बराबर सोना ले लें। तुर्की ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सजा बहाल रखी।
ईरान के शाह को भी कम दुख न था। उसने प्रस्ताव भेजा कि तुर्की ईरान का सारा राज्य ले लें और बदले में सन्त को छोड़ दें।
इस प्रस्ताव पर आश्चर्यचकित तुर्कों के सुलतान ने उलट कर ईरान के शाह से पूछा-जिस राज्य को हम लड़कर न जीत सके उसे आप लोग एक आदमी के बदले भला क्यों हारने जा रहे हैं?
इस पर शाह का उत्तर था राज्य नश्वर है किन्तु सन्त अविनाशी हैं। सन्त को खोकर ईरान सदा के लिए कलंकित हो जायगा, किन्तु राज्य खोकर उसे थोड़ी सी ही क्षति उठानी पड़ेगी।
तुर्की के सुलतान की आँखें खुल गईं। उनने समझ लिया कि जिस देश में सन्तों का इतना आदर है उसे कोई सहज ही नहीं जीत सकता। उन्होंने सन्त फरीदुद्दीन को आदर सहित बन्धन मुक्त कर दिया था।