सर्वदा के लिए सुखी (kahani)

February 1975

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समष्टि ने अपने बच्चे की ओर देखा और अपनी ओर। वह बहुत गम्भीर हो गई। अपने किशोर पुत्र के सिर पर वह हाथ फिराती रही और व्यथा भरे शब्दों में बोली - लाल, तुम एक बार मुझे बन्धन मुक्त करा दो, मेरी अपहृत चेतना वापिस दिलादो, मेरा वेष सम्भाल दो। बस एकबार केवल एकबार - तुम इतना कर सको तो मैं तुम्हें सदा सर्वदा के लिए सुखी और समुन्नत रह सकने योग्य बना दूँगी।


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