असफलता हमें हताश न कर पाये

February 1975

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

समझदार व्यक्ति अपने जीवन-लक्ष्य को पूरा करने के लिए निरन्तर प्रयत्न करता है। वह एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देता। एक-एक कदम आगे बढ़ाता चलता है, पर उसके हर कदम को सफलता चूमती ही हो, यह कोई अनिवार्य तथ्य नहीं है। कभी - कभी विफलता का मुँह भी देखना पड़ता है। इस असफलता से उस व्यक्ति को दुख तो होता है, बड़ी निराशा भी होती है, पर वह अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। वह सावधान जरूर हो जाता है। अपनी विफलता से यह प्रेरणा प्राप्त करता है कि उसे अधिक तत्परता के साथ कठोर परिश्रम करना चाहिए। ऐसे अवसरों पर लोगों को अपनी भूल सुधारने का अवसर मिलता है। यदि मनुष्य को पग-पग पर सफलता प्राप्त हो, तो वह अवश्य ही मदोन्मत्त हो जायेगा। ऐसा व्यक्ति फिर आगे बढ़ नहीं सकता। अवनति के गर्त में जरूर गिर जायेगा।

मनुष्य जो कार्य करता है, उसका परिणाम उसे अवश्य मिलता है। यह एक वास्तविकता है। कोई क्रिया होती है तो उसकी प्रतिक्रिया भी होती है जो कुछ कार्य किया जाता है, उसका प्रतिफल भी तो प्राप्त होता है, पर उस मनुष्य को उसका फल कब मिलेगा ? उसका परिणाम कितना होगा ? कैसा होगा वह - ये सब निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उसे अपने कार्य में सफलता भी मिल सकती है और विफलता भी। ये दोनों ही बातें परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। कोई घुड़सवार कितनी देर में कितनी दूर पहुँच जायेगा ? इसका कोई एक उतर हो ही नहीं सकता। क्योंकि कई बातों से इस उतर का सम्बन्ध है। वह घुड़सवार घोड़े की सवारी में कितना कुशल है ? डरपोक तो नहीं है ? उसका घोड़ा तेज चलने वाला है अथवा मरियल टट्टू है। इन बातों की सही जानकारी होने पर ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह घुड़सवार कितनी देर में अपनी मंजिल पर पहुँच जायेगा।

हम जो कार्य करते हैं उसे सफलता प्राप्ति की आशा से करते हैं। आशा ही क्यों, पूरे विश्वास के साथ करते हैं। उसमें सफलता प्राप्त होने पर साहसपूर्वक आगे कदम बढ़ाते हैं। किन्तु दुर्भाग्य से यदि उस कार्य में असफलता मिलती है तो बड़ा दुख होता है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि इच्छा पूरी होने पर उसे सुख का अनुभव होता है और किसी प्रकार की कठिनाई आती है तो दुख होता है।

सफलता सुखदायी होती है। इसलिए हम उसे प्राप्त करना चाहते हैं। उसके लिए दिन-रात एक कर देते हैं। हमारी यह मनोकामना कब पूर्ण हो जायेगी ? इसका एक निश्चित उतर नहीं दिया जा सकता। उतर देने के पूर्व विभिन्न परिस्थितियों पर विचार करना पड़ता है। हमारा स्वभाव, सामयिक सूझ-बूझ, परिश्रमशीलता, पर्याप्त योग्यता, दूसरों की मदद, तत्कालीन परिस्थितियाँ, साधन का अच्छा या खराब होना, हमारी तत्कालीन उत्तरदायित्व, स्वास्थ्य आदि अनेक बातों से सफलता का सम्बन्ध है। ये सारी बातें हमेशा अनुकूल नहीं रहतीं। केवल प्रयत्न करके सफलता की आशा नहीं की जा सकती।

सफलता प्राप्त करने के लिए हमें भरपूर कोशिश तो करनी चाहिए, पर असफलता का दुख सहन करने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। उन्नति के मार्ग पर चलने वाले हर व्यक्ति को इनका सामना करना पड़ा है। दिन और रात की भाँति सफलता और विफलता का चक्र भी चलता रहता है। हमेशा सफलता की आशा करना नासमझी है। विवेकशील व्यक्ति ऐसा कभी नहीं सोचता। केवल सफलता की आशा करना और उसके न मिलने पर उदास होना ओछे और कमजोर लोगों का काम है। जीवन की बहुमूल्य शिक्षा यह है कि छोटी-मोटी सफलताओं से आनन्द में पागल न हो जावें और न ही असफलता को देखकर हिम्मत हारें। उसका भी स्वागत करें सफलता प्राप्त होने पर जैसी सुख-सुविधा की अनुभूति होती है वैसी ही विफलता से आत्म-सुधार और धीर-वीर बनने की प्रेरणा मिलती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118