एक दुखी व्यक्ति किसी सिद्ध महात्मा के पास पहुँचा और कठिनाइयों से छुड़ाने का उपाय बताने के लिए प्रार्थना करने लगा।
सिद्ध पुरुष ने कहा- तुम किसी सर्व सुखी मनुष्य का कुर्ता माँग लाओ जिसे किसी प्रकार का दुख न हो।
दुखी मनुष्य दूर-दूर तक गया और हर स्तर के मनुष्यों से मिला। पर हर एक ने अपने का किसी न किसी प्रकार के दुख में ग्रसित ही बताया।
अन्त में एक साधु बहुत ही प्रसन्न चित्त दिखाई पड़ा। पूछने पर उसने बताया कि मैं सुखी हूँ। पर कुर्ता तो उसके पास था ही नहीं - वह नंगे बदन रहता था।
लौटकर दुखी मनुष्य ने सारा वृत्तांत सिद्ध पुरुष को सुनाया। इस पर उनने गम्भीर होकर कहा - तात, जिसके पास जितना अधिक संग्रह है उसे उतना ही अधिक दुख है। सुखी तो ऐसा अपरिग्रही ही रह सकता है जिसे तृष्णा और कामना से छुटकारा मिल गया है।
दुखी मनुष्य - दुखों का कारण समझ गया और जो पास में है उसी से सन्तोष करने का निश्चय करके हंसता, मुस्कुराता घर लौट गया।