हिंसा और अहिंसा की विवेचना

February 1975

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दीपक जब आलोकित होता है तब अन्धकारमय वातावरण प्रकाश से जगमगा उठता है। गुलाब का फूल पूरे बगीचे में अपनी खुशबू बिखेरता है। वीणा में तार जब झनझनाते हैं तो मधुर स्वर लहरी फैलकर सुनने वाले के हृदय में आनन्द का सृजन करती है। इसी प्रकार यदि मनुष्य का मन गुलाब बन जाय तो सद्विचारों की सुगन्ध संसार में फैल जाय। यदि दीपक बन जाय तो दिव्य प्रकाश के रूप में वसुदेव कुटुम्बकम की भावना फैलेगी। मन वीणा में से जन-कल्याण की मधुर स्वर लहरी फूटेगी।

आत्मा आनन्द से भर उठता है तो जो भी उसके संपर्क में आता है, आनन्द प्राप्त करता है। आत्मा का आनन्द जब मन में उतरता है, तब उसे प्रेत कहते हैं। जब क्रिया रूप में परिणत होता है तो उसे अहिंसा की संज्ञा दी जाती है। अहिंसा आनन्द का मूर्तरूप हैं ‘जो विश्व के कण- कण में मिलकर उसे मधुर और मंगलमय बनाता है।’ हमारे मन की बुराइयां जब क्रिया का रूप लेती हैं तब हिंसा कहलाती हैं।

महात्मा गाँधी ने अहिंसा को बहादुर व साहसी व्यक्ति का शस्त्र कहा था। अहिंसक की कायरता उनकी दृष्टि में हिंसा से भी बदतर थी। उनका कहना था कि - अहिंसक का प्रथम कार्य अभय होना है। जहाँ तक हमारे में कायरता है, भय है, वहाँ तक हम सच्चे अहिंसक नहीं है।

संसार के जितने भी धर्म हैं सबकी आधार शिला अहिंसा है। हिंदुओं के मूल ग्रन्थ वेदों में स्थान-स्थान पर हिंसा की महत्ता प्रतिपादित की गई है। तुलसीदास जी महाराज ने भी कहा है - ‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ महाभारत में भी अहिंसा को परम धर्म बताया है - ‘अहिंसा परमोधर्मस्तथा अहिंसा परमं तपः।

ईसाई धर्म की आधारशिला अहिंसा और प्रेम है। ईसाइयों के मूल ग्रन्थ बाइबल का उपदेश है कि कोई तुम्हें एक गाल में तमाचा लगावे तो दूसरा गाल उसके सामने कर दो। यह भी अहिंसा का एक गुण है। मुसलमानों के धर्म ग्रन्थ कुरानशरीफ में भी अहिंसा पर जोर दिया है ‘व मन् अह्या हाफक अन्नमा अह्यऽऽनास जमी अत्।’ जिसने किसी की जान बचायी उसने मानो प्रवर्तक मुहम्मद साहब कहा करते थे कि - ‘जानवरों पर भी रहम करो।’

बौद्ध व जैन धर्म तो अहिंसा के प्रचार के लिए ही स्थापित हुए। भगवान बुद्ध दया, ममता के सागर थे। और भगवान महावीर जो जैन धर्म के प्रमुख तीर्थंकर माने जाते हैं, उन्होंने तो साँप तक पर भी क्रोध नहीं किया। पारसी लोग होरमज्द की मानते हैं उनके प्रमुख ग्रन्थ अवेस में लिखा है कि ‘सबसे प्रेम करें, सबकी सेवा करें।’

यहूदियों को ईश्वर यहोबा है। यहोवा की दस आज्ञाएं हैं उनमें से एक आज्ञा है ‘तू किसी की हत्या मत कर’ ‘तालमुद ग्रन्थ में यहोवा के सम्बन्ध में लिखा है यहोबा परमदयालु है उसमें करुणा व प्रेम भरा है वह क्षमाशील है।’

चीन में बौद्ध धर्म के अतिरिक्तताओं धर्म तथा कनफ्यूश धर्म के अनुयायी हैं। कनफ्यूश धर्म के प्रवर्तक काँगफ्यूत्सी का कथन है ‘भाईचारा, प्रेम दूसरों के साथ वैसा व्यवहार मत करो जैसा कि तुम नहीं चाहते कि वे तुम्हारे साथ करें।”

इस प्रकार प्राचीन काल से लेकर अब तक जितने धर्म, जितने सन्त, जितने विचारक हुए हैं उन्होंने अहिंसा को ही आधार बनाया हमारी आजादी के मूल में महात्मा गाँधी का सत्य और अहिंसा ही थी। हमारे यहाँ तो अहिंसा की पग-पग पर प्रशंसा और आवश्यकता बतलाई गई है।

किसी को मार देना ही हिंसा नहीं है। भगवान महावीर ने किसी को मार देना स्थूल हिंसा कहा है। उनका कहना है कि किसी को मारना या जिलाना आपके हाथ में नहीं है। अन्तर जगत में किसी को पीड़ा या मार डालने के विचार आना भी हिंसा कहलाती है।


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