सत्य ही हमें स्वर्ग तक पहुंचाता है।

February 1975

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महाभारत के उद्योग पर्व में लिखा है-

“सत्य स्वर्गस्य सोपान पारावा रस्नौरिव।”

-अर्थात् जिस प्रकार नाव का आश्रय व्यक्ति को समुद्र पार करा देता है, उसी प्रकार सत्य व्यक्ति को संसार-सागर से पार कर स्वर्ग तक पहुँचा देता है।

यह एक सारपूर्ण सिद्धान्त है। सत्य का मार्ग देखने और चलने में कठिन और दुरूह प्रतीत होता है किन्तु सत्य जैसा सरल मार्ग दूसरा नहीं। एक असत्य को छिपाने के लिए लाल लाख असत्य बोलने पड़ते हैं, नमक-मिर्च लगाना पड़ता है। मस्तिष्क को विभिन्न प्रकार की कसरत करनी पड़ती है तो भी सत्य छिपाने से छिप नहीं पाता। एक दिन असत्य खुलता ही है और तब असत्यवादी सबका विश्वास भी खो बैठता है और अपना सम्मान भी। उसे किसी का सहयोग नहीं प्राप्त होता।

असत्य का मार्ग पकड़ कर लोग थोड़े दिनों तक लाभ अर्जित कर सकते हैं, अपनी आमदनी और इज्जत बढ़ा सकते हैं, अपनी शान-शौकत जताकर लोगों को थोड़े दिन तक उल्लू बना सकते हैं, किन्तु रामलीला के नकली रावण को जैसे ही दियासलाई लगती है, विशालकाय रावण थोड़ी ही देर में जलकर भस्म हो जाता है। वैसे ही असत्य का अनावरण एक न एक दिन होता ही है। स्थिरता केवल सचाई में है। उसको समझने में देर भले ही लग सकती है। अन्ततः विजय सत्य की होती है। “सत्यमेव जयते नानृतमः”।

सत्य-साधन कठिन इसलिए प्रतीत होती है कि उसमें असत्य की चमक-दमक नहीं है। सत्य संयम है, व्रत है। सत्य सारे साधनों की आधार शिला है। कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, बिना सत्य-साधना के सफल नहीं हो सकती। आध्यात्मिक प्रगति के लिए सत्य का अवलम्बन करने पर अन्य साधनों की आवश्यकता नहीं रहती। ईमानदारी, सहिष्णुता, उदारता, भयहीनता आदि गुण सत्य के सहचर हैं। सत्य-पथ का पथिक न कभी अशान्त होता है, न शोक करता है, न सन्ताप करता है। यह सब असत्य-परायणों के लिए ही निश्चित हैं। सत्य-परायण के लिए लोक में शान्ति एवं सम्मान तथा परलोक में स्वर्ग सुरक्षित रखा है, जिसे वह अधिकारपूर्वक प्राप्त करता है। सत्य का अनुसरण करने वाला क्या भौतिक और क्या आध्यात्मिक किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं होता। सत्य बोलने, सत्य के अनुरूप सोचने और सत्य से स्वीकृत कर्म करने से ही मनुष्य सत्य-स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।

भारतीय धर्म में सत्य को परमात्मा का स्वरूप माना है। सत्य को नारायण कहा गया है। सत्य-नारायण कहा गया है। सत्य-नारायण व्रत एवं कथा यह चिर-प्रचलित है। यह सत्य-नारायण कोई व्यक्ति या देवता नहीं है वरन् सचाई को अन्तःकरण, मस्तिष्क और व्यवहार में प्रतिष्ठापित करने की प्रगाढ़ आस्था ही है। जो सत्य-निष्ठ है वही सत्य-नारायण भगवान् का समीपवर्ती साधक है। स्वर्ग और मुक्ति, सिद्धि और समृद्धि तो उसके करतल गत ही है।

सत्य शाश्वत होता है। मानवीय नियमों की भाँति वे बदले और संशोधित नहीं किये जा सकते। जीवन और सृष्टि का एकमात्र आधार सत्य ही है। सत्य ही व्यक्ति के जीवन में बल एवं प्रकाश और क्षमता निखरती है। असत्य का आश्रय लेने पर व्यक्ति और समाज का अध;पतन होता है।

असत्य का त्याग करना जीवन में आनन्द और विकास के बीज बोने के समान है। ‘सत्य शिव सुन्दरम्’ सत्य ही शिव है- कल्याणकारी है और वही सुन्दर है। असत्य का आचरण हर प्रकार से अमाँगलिक होता है। मनीषियों ने सत्य को मनुष्य के हृदय में रहने वाला ईश्वर बताया है। सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है जो सूर्य के समान हर स्थल पर समान रूप से चमकता है।


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