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February 1975

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विश्वास मनुष्य का महत्वपूर्ण आलम्बन है। जीवन में उसे नानाविधि कठिनाइयों, समस्याओं, असुविधाओं से द्वन्द्व करना पड़ता है। आत्म-विश्वास ही उसे इस संकट से मुक्ति देता है। मनुष्य वही श्रेष्ठ माना जायेगा जो अपनी कठिनाइयों से अपनी राह निकालता है। आत्मविश्वास की पतवार लेकर उसे अपनी जीवन-नैया खेनी पड़ेगी, आँधी तूफानों से संघर्ष करने के लिए उसे अपना दिल मजबूत बनाना होगा, अपनी आत्मसत्ता को जागृत करना पड़ेगा।

जामवन्त ने पवनपुत्र के आत्म विश्वास को जागृत किया, जबकि सभी वानरी-व्यूह विशाल समुद्र को देख निष्प्रभ हो गये थे। इस परिस्थिति में ऋक्षराज जी ने हनुमान जी को सम्बोधन करके कहा - पवन-तनय तुम्हारा जन्म राम कार्य के लिए हुआ है तुम्हारा बल अथाह है इन प्रोत्साहन भरे शब्दों को सुनकर हनुमान “कनक भूधराकार शरीरा” हो गये। वे समुद्र लाँघकर जनकतनया-सीता का पता लाये। यही दुष्कर कार्य आत्मविश्वास के बल पर सामान्य गया।

आत्मविश्वास संसार में प्रायः महान कार्यों को जन्म देता है। महात्माजी का विश्वास कह रहा था कि स्वतन्त्रता हमें मिलकर रहेगी। इस आत्मविश्वास के बल पर वे सत्य, अहिंसा के अस्त्र को लेकर स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। अन्ततो गत्वा भारत माता की दासता रूपी बेड़ी को काटने में सफलता अर्जित की। लिंकन ने अथक प्रयास कर दासों को मालिकों के शिकंजे से मुक्त किया। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, “मैंने अपने भगवान को वचन दिया है कि दासों की मुक्ति के कार्य को अवश्य पूरा करूंगा।” इसी आत्मविश्वास ने कोलंबस को अमेरिका की खोज में सहयोग दिया था। नैपोलियन ने इसी शक्ति के आलम्बन पर अपने सेनापति से कहा था, “यदि आल्पस हमारा मार्ग रोकता है तो वह नहीं रहेगा और सचमुच उस विशाल पर्वत को काटकर रास्ता बना लिया गया।

विश्वास सफल जीवन का मूल मन्त्र है। महात्मा गाँधी ने कहा था - “विश्वास हमारी जीवन-नैया को तूफानी सागर में भी खेता है। विश्वास पर्वतों को डिगा देता है। विशाल सागर को लाँघ सकता है। विश्वास कोमल पुष्प नहीं है जो साधारण वायु के झोंके से गिर जाय। स्वेट मार्डेन ने लिखा है - “विश्वास जीवन के उस मार्ग की खोज करता है जो हमें मंजिल तक पहुँचाता है। राजा भगीरथ को गंगावतरण में इस आत्मविश्वास ने सफलता पहुँचायी थी।

आत्मविश्वास के समक्ष अभाव, अभिशाप दीनता, दारिद्रय निष्क्रिय हो जाते हैं। ये विषमतायें उसमें गत्यावरोध उपस्थित नहीं करतीं। संसार में ऐसी कितनी ही विभूतियों ने जन्म लिया है जो इन बाधाओं को ठोकर मारते हुए मंजिलों पर पहुँची हैं।

मनुष्य अपने व्यक्तित्व का निर्माता स्वयं है। उसके पास आत्मविश्वास का बहुत बड़ा सम्बल है। बढ़ई का कार्य करने वाला बिना औजार के दरवाजे चौखट आदि काष्ठ निर्मित चीजें नहीं बना सकता। उसी भाँति मनुष्य को अपने चरित्र, गुण एवं व्यक्तित्व निर्माण के लिए आत्मविश्वास आवश्यक है। कुछ लोगों में अच्छी शिक्षा अच्छा साधन, अच्छा ज्ञान होता है फिर भी उनको अपने कार्यों में सफलता इसलिए नहीं प्राप्त होती क्योंकि उनमें आत्मविश्वास की कमी है।

छोटी-मोटी असफलताओं पर ध्यान न देकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाना चाहिये। संसार का कर्णधार वही बन सकता है जिसमें आत्म-विश्वास है। नये मार्गों के शोधक भी वे ही व्यक्ति होते हैं। अतः आत्मविश्वास के महत्व को हृदयंगम कर उसमें प्रगति लाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।


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