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Akhand Jyoti
Year 1975
Version 2
सद्वाक्य— नीति वाक्य
सद्वाक्य— नीति वाक्य
February 1975
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जो व्यक्ति ऊँचे विचारों की सुखद संगति में रहते हैं, वे कभी अकेले नहीं हो सकते।
— फिलिप सिडनी
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Page Titles
पगडंडियाँ न खोजें राजमार्ग पर चलें
सत्य ही हमें स्वर्ग तक पहुंचाता है।
जड़ और चेतन में एक ही सत्ता ओत प्रोत है।
सद्वाक्य— नीति वाक्य
हमारी बुद्धि सर्वज्ञाता नहीं है
तप शक्ति का सत्प्रयोजनों के लिए नियोजित कर सकूँ (kahani)
धर्म और ईश्वर भी प्रगति पर
राज्य नश्वर है किन्तु सन्त अविनाशी हैं (kahani)
दुःख और सुख मिल बाँट कर हलके करें
जिजीविषा की अजेय सामर्थ्य
मनोयोग पूर्वक कार्य करने से चमत्कारी परिणाम (kahani)
संघर्ष रचनात्मक पथ समर्थन के लिये किया जाय
समुद्र में मिलने-उस जैसा बनने (kahani)
जिन्दगी और मौत सगी सहोदर बहनें
सद्वाक्य— नीति वाक्य
हम निष्ठावान बनें और स्वर्ग का सृजन करें
मानवी अस्तित्व और सभ्यता को चुनौती देने वाला अभूतपूर्व विश्व संकट
जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए(kahani)
भारत ज्ञान-क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करेगा
सद्वाक्य— नीति वाक्य
अपने पर भरोसा करें आप समर्थ हैं।
जीवन यात्रा के अवरोधों से सतर्क रहें
सर्वदा के लिए सुखी (kahani)
असफलता हमें हताश न कर पाये
विदेशों में योग प्रचार बचकाना खिलवाड़ न बनाया जाय
सद्वाक्य— नीति वाक्य
“रक्षक - भक्षक” (kavita)
हिंसा और अहिंसा की विवेचना
अनासक्ति योग में ज्ञान- भक्ति- कर्म का समन्वय
एक फकीर (kahani)
दृष्टिकोण बदलें सब कुछ बदलेगा
सफल जीवन की सरल रीति-नीति
रोगमुक्ति दवाओं से नहीं प्रकृति की शरण में जाने से
दुखों का कारण (kahani)
शरीर तब स्वस्थ रहेगा जब मन स्वस्थ हो
सद्वाक्य— नीति वाक्य
अपनों से अपनी बात
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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