एक फकीर (kahani)

February 1975

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एक फकीर ने जंगल में अपने लिए एक झोंपड़ी बनाई। इतनी छोटी - जिसमें वह एकाकी पैर पसार कर सो भर सके।

एक बार सर्दी के दिन थे। जोर की वर्षा हो रही थी। एक प्रहर रात बीत गई। कोई भूला-भटका राहगीर उधर आ निकला। वर्षा और सर्दी के कारण वह काँप रहा था।

झोंपड़ी के बाहर खड़े होकर उसने दरवाजा खटखटाया। सोता फकीर उठा और कारण पूछा। राहगीर ने अपनी कठिनाई बताई और कहा - रात काटने को यहाँ जगह मिल जाती तो अच्छा होता।

फकीर ने राहगीर को भीतर बुलाते हुए कहा - इस झोंपड़ी में एक आदमी के लायक सोने की जगह है पर बैठकर तो दो भी रात काट सकते हैं। सो आओ - मिल बैठकर रात काट लें।

एक घण्टा भी न बीतते पाया होगा कि किसी ने फिर दरवाजा खटखटाया। उसे खोला गया। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी कोई भूला -भटका राहगीर है और रात काटने के लिए आश्रय चाहता है।

फकीर ने उसे भी भीतर बुला लिया और कहा - झोंपड़ी में एक के लिए सोने की जगह थी। बैठकर हम दो गुजर कर रहे थे पर जब जरूरत ही आ पड़ी तो खड़े होकर हम तीनों भी रात काट लेंगे।


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