बुढ़ापा एक आदत मात्र है। कार्य व्यस्त आदमी के पास इतना समय नहीं आता कि इस बेकार की आदत को अपनाये। - आन्द्रे मोर्वा
सर ओलीवर लाज, मेडम वैवेटस्की, प्रभृति तत्त्ववेत्ता अतीन्द्रिय विज्ञान की आधुनिक शोध में महत्त्वपूर्ण कार्य कर चुके है। दूर दर्शन, दूर श्रवण, परोक्षानुभूति, परिचित विज्ञान, परकाया प्रवेश जैसे कितने ही प्रयोग प्रत्यक्ष प्रयोग शालाओं में होते हैं। मैस्मरेजम, हिप्नोटिज्म को अब टोना टोटका नहीं माना जाता वरन् उसके आधार को विज्ञान सम्मत स्वीकार कर लिया गया है। कितने ही व्यक्ति समय समय पर प्रकाश में आते रहते हैं जो मनुष्य में अलौकिकताओं की संभावना को हर कसौटी पर प्रमाणित कर सके। यह सारी परिधि अतीन्द्रिय मन की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य पर ही प्रकाश डालती है। भूतकाल का इतिहास तो इस ब्रह्मविद्या की महत्ता से भरा पड़ा है। वह दिन दूर नहीं जब अतीन्द्रिय विज्ञान के शोध कर्ता मनुष्य की महान् महत्ता को अब की अपेक्षा सहस्रों गुनी अधिक अद्भुत सिद्ध कर सकेंगे तब प्रकृति के नई चेतना जगत के एक से एक बढ़ कर महत्त्वपूर्ण रहस्यों का उद्घाटन मात्र मानवी शरीर एवं मन रूप यंत्र से ही सरल संभव हो सकेगा।
मनोविज्ञान आज भले ही भ्रान्तियों के उलझन में उलझ गया हो पर आशा करनी चाहिए यथार्थता अगले दिनों प्राप्त कर ली ही जायेगी और पशु प्रवृत्तियों से ऊँचा उठाकर ही मनुष्य को देव स्तर तक पहुँचाने में मनः शास्त्र अपनी उचित भूमिका सम्पादन करेगा।