भगवत् भजन में लीन हुआ मन ऐसे ही भासित होता है जैसे तपा हुआ कुन्दन। फिर वहाँ वासना का एक भी कण नहीं जम पाता।
जिस समय संत तुकाराम भंडारा पर्वत पर अपनी साधना में लीन थे- एक स्त्री अपने रूप पाश में बाँधने के उद्देश्य से वहाँ आई। संत तुकाराम ने एक अभंग में उसे जो उद्बोधन दिया उसने उस स्त्री का मन ही पलट दिया। वे कहते हैं “ परस्त्री मेरे लिए रुक्मिणी माता के समान है, इसलिए हे माता! तुम जाओ और मेरे लिए कुछ प्रयत्न मत करो, हम तो विष्णु के दास है। मुझसे तुम्हारा यह पतन देखा नहीं जाता। तुम आगे कभी ऐसी अपवित्र बात मुख से मत निकालना। “ और उस कामासक्ता रमणी को इस प्रकार रुक्मिणी माता बनाकर संत ने उसे विदा कर दिया।