दीर्घायु और सरस जीवन की पगडंडी

January 1973

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पैरिस के सारवोन विश्वविद्यालय की 80 वर्षीय विशिष्ट छात्रा अंग्रेजी और जर्मन भाषा का अध्ययन करती रही और शिक्षा क्षेत्र में अपना अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करती रही। बर्फ जैसे श्वेत बालों वाली महिला का दंत रहित और झुर्रियों से भरा हुआ चेहरा चमकती हुई आँखों के कारण अपने ढंग के विशेष आकर्षणों का केन्द्र था। उक्त महिला के तीन पुत्र, सात पोतियाँ और एक परपोती थी। पढ़ाई उसने वहाँ से आरम्भ की जहाँ से उसने साठ वर्श पूर्व गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हुए उसने छोड़ी थी।

इस वृद्ध छात्रा का कहना है कि कुछ ध्येय लेकर आरम्भ किया हुआ काम ही जीवन की सरलता स्थिर रख सकता है। निरुद्देश्य समय काटने वाले लोग शारीरिक दृष्टि से भले ही अपना अस्तित्व बनाये रहे मानसिक दृष्टि से गिरते और मरते ही चले जाते हैं। वह चाहती थी कि मौत के दिन उसका जीवन आशा और उत्साह युक्त क्रिया कलापों में लगा रहे, इसलिए उसने यही निश्चय किया कि विद्याध्ययन जैसे रुचिकर कार्य में वह अन्तिम साँस चलने तक लगी रहे।

कई व्यक्ति काम से बचने का प्रयत्न करते हैं और निठल्लेपन को सौभाग्य या आनन्द का केन्द्र मानते हैं। अपने छोटे-छोटे कार्यों तक को स्वयं न करके दूसरों पर आश्रित रहते हैं। न उनके सामने कोई लक्ष्य होता है न दिशा। जैसे तैसे समय काटने के लिये निरर्थक कार्यों या व्यक्तियों का सहारा ताकते हैं। जिन्हें सक्रियता में रुचि है और सोद्देश्य क्रमबद्ध जीवन क्रम के परिणामों को समझा है वे इस प्रकार के निठल्लेपन को एक गई गुजरी आदत मानते हैं।

आयु के अनुसार श्रम का स्तर एवं स्वरूप बदला जा सकता पर हर हालत में संलग्नता और तत्परता तो बनी ही रहनी चाहिए। पूर्णतया निरर्थक व्यक्ति तो कभी भी नहीं बन सकता। अन्धे और रोगी भी कुछ न कुछ उपयोगी शारीरिक या मानसिक श्रम कर सकते हैं यदि श्रम के प्रति निष्ठा हो- सक्रियता का महात्म्य विदित हो तो हर शारीरिक स्थिति में कुछ न कुछ ऐसा, काम ढूँढ़ा जा सकता है, जिसके आधार पर आर्थिक, परमार्थिक, बौद्धिक, अथवा दूसरे प्रकार की उपलब्धियाँ प्राप्त हो सके। जीवन मनः स्थिति का प्रमाण परिचय उसकी उत्साह भरी क्रियाशीलता के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है। जिसे श्रम करने से डर लगता है उन कामचोरों को ऐसा जीवित मनुष्य कहा जा सकता है जो जिन्दा तो है पर जिसे जिन्दगी के आनन्द का कुछ भी ज्ञान नहीं।

रूस के अजरवेजान प्रान्त के लोग दीर्घ जीवी होते हैं वाकू नगर में एक 159 वर्षीय वृद्ध शिराली मिसलीमोव का सम्मान समारोह मनाया गया तो वह अपने गाँव से 6 मील दूर पैदल चलकर वहाँ पहुँचा। यह वृद्ध किसान अपना भेड़ पालने का काम भली प्रकार कर लेता है और हर घड़ी किसी न किसी काम में लगा रहता है।

रूस सरकार ने कुछ वर्श पूर्व ऐसे ही एक 158 वर्षीय किसान मखमूद इवाजोव को सम्मानित किया है। अखबारों के संवाददाता जब उससे इस दीर्घजीवन का रहस्य पूछने गये तो उसने इतना ही कहा कि वह दिमागी उथल-पुथल और क्षोभ विक्षोभों से दूर रहा है- शान्ति पूर्ण और हँसी खुशी से दिन गुजारता रहा है, संतोषी बनने और साथियों के साथ हिल-मिलकर रहने की राह पर चला है और हर घड़ी अपने काम में दिलचस्पी लेते हुए सक्रिय रहा है। नियमितता और समय की पाबन्दी उसकी आदत रही है। इसके अतिरिक्त और कोई रहस्यमयी बात या क्रिया याद नहीं आती जो उसके दीर्घजीवन का विशेष कारण कही जा सके।

वस्तुतः इन्हीं सामान्य गतिविधियों में शारीरिक और मानसिक आरोग्य एवं आनन्द का रहस्य छिपा पड़ा है।


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