श्री गोपालचन्द्र घोष (Kahani)

January 1973

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बहुत समय तक प्रयत्न करने पर भी श्री गोपालचन्द्र घोष को भाव-समाधि न होती थी। जब कि अनेक व्यक्तियों को हो रही थी। एक दिन उन्होंने अपनी यह निराशा श्री रामकृष्ण परम हंस के सम्मुख प्रकट की। श्री रामकृष्ण परम हंस ने कहा , “तू बड़ा कम बुद्धि का है निराशा या दुःख की क्या बात है? क्या तू समझता है कि भाव-समाधि होने से सब कुछ हो जाता है। क्या यही सबसे बड़ी चीज है? सच्चा त्याग भाव और परमात्मा में पूरी आस्था उससे भी बड़ी चीज है। भाव-समाधि न सही। उच्च भावों का विकास करो। उस नरेन्द्र (स्वामी विवेकानन्द) को देखो न, भाव-समाधि की चिन्ता किये बिना ही अपने, त्याग, विश्वास, निष्ठा और आस्था के कारण कितना तेजवान और उन्नत मन वाला तरुण है। “

श्री गोपालचन्द्र घोष का भ्रम दूर हो गया और वे प्रसन्नता पूर्वक मनोविकास में तत्पर हो गये।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118