नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रख्यात लेखक विलियम फाकनर किसी जमाने में मिसिपिसी डाकखाने में एक मामूली क्लर्क थे।
उन दिनों बहुमूल्य जीवन का बहुमूल्य उपयोग करने के लिए उनकी आत्मा बहुत तड़पती थी, पर वेतन देने वाले अधिकारी जरा भी अवकाश डाक सेवा के अतिरिक्त और कुछ करने के लिए देने को तैयार न थे।
एक दिन वे बहुत उद्विग्न हो उठे और भविष्य की आजीविका का बिना कुछ विचार किये इस्तीफा लिखने बैठ गये। आवेश में लिखा वह इस्तीफा पोस्ट मास्टर जनरल के पास पहुँचा और वहाँ उसे स्वीकार भी कर लिया गया। इसके बाद वे साहित्य सृजन के काय में दत्तचित्त होकर लग गये। वह आवेश भरा इस्तीफा राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित रखा है और पर्यटकों के लिए वह एक कौतूहल की ही पूर्ति नहीं करता- एक प्रेरणा और दिशा भी देता है। इस्तीफा में लिखा है-
“पेट पालने के लिए दूसरों पर आश्रित रहना, उनके इशारों पर चलना तो पड़ता ही है, पर मेरे लिए यह असह्य है कि पैसे के लिए ही बिका रहूँ और जिंदगी के कीमती क्षणों को ऐसे ही गँवाता, बर्बाद करता रहूँ। अब इस सर्व स्वीकृत ढर्रे पर चलते रह सकना मेरे लिए संभव न हो सकेगा। मैं कुछ ऐसा करूँगा जो मुझे करना चाहिए। सो यह लीजिये मेरा इस्तीफा।”