पादरी आशीर्वाद देना भूल गया (Kahani)

January 1973

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पादरी नित्य समुद्र को आशीर्वाद देने जाता था। एक दिन उसने देखा कोई तरुण नाविक किसी जलपरी की लाश को अपने बाहुपाश में कसे मरा पड़ा है।

पादरी आशीर्वाद देना भूल गया, उसने क्रोध से झल्ला कर कहा- हटाओ इन कलुष ग्रस्त लाशों को इस पवित्र स्थल से और उन्हें मरघट के एक गंदे कोने में गाढ़ दो।

ऐसा ही किया गया। वे लाशें कूड़े के ढेर में गाढ़ दी गई। वे सड़ गई और दो पुष्प गुल्मों के रूप में उग कर सारे मरघट को सुगन्ध से महकाने लगी।

उस दिन गिरजे में उत्सव था। धूप दानी मग धूप और पवित्र जल का अभिसिंचन करके पादरी धर्मोपदेश में निमग्न था और बता रहा था कि पापियों पर स्वर्ग के पिता का शाप किस किस तरह उतरता है। यह तो उसे याद ही नहीं रहा कि ईश्वर का स्वभाव क्रोध नहीं वह तो प्रेम है- अनन्त प्रेम।

धर्मोपदेश की ओर भक्तों ने ध्यान नहीं दिया वे तो वेदी पर पड़े हुए पुष्पों की अलौकिक मादकता से उत्पन्न मस्ती में झूम रहे थे।

पादरी ने सेवकों से पूछा- यह फूल किसने चढ़ाये? कहाँ से पाये? किसके है?

माली ने रुँधे गले से कहा- कूड़े के ढेर में सड़ी मरघट की दो लाशों पर जो झाड़ उगे है उन्होंने मरघट की तरह गिरजा घर को भी महका दिया है।

पादरी की आँखों से दो अश्रु बिन्दु लुढ़क पड़े पूजा की वेदी पर बिखरे हुए उन पुष्पों पर।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118