देव सभा में यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि ब्रह्मा , विष्णु, रुद्र इन तीनों देवताओं में बड़ा कौन है? तर्क वितर्क बहुत चलते रहे पर अन्तिम निष्कर्ष कुछ नहीं निकला।
समस्या का हल भृगु को सौंपा गया। उन्होंने परीक्षा की विधि निर्धारित की ओर क्रमशः तीनों देवताओं के निवास स्थानों के लिए चल पड़े
पहले ब्रह्मा जी के यहाँ पहुँचे वे सृष्टि रचना और वेद व्याख्यान में लग रहे थे। भृगु जी उन्हें बिना प्रणाम किये समीप के आसन पर गंदे पैरों से जा बैठे।
ब्रह्मा जी कुद्ध हुए और अशिष्टता बरतने के लिए उन्हें बहुत बुरा भला कहा। भृगु देव उठ कर चुप-चाप चल दिये।
अब वे शंकर जी के पास पहुँचे वे पार्वती को कथा सुना रहे थे।
भृगुजी ने वहाँ भी ऐसी ही अशिष्टता बरती बिना प्रणाम अभिवादन किये पार्वती के आसन पर उनसे सट कर जा बैठे।
यह उद्धत आचरण शिवजी को बहुत बुरा लगा और वे आग-बबूला हो गये। त्रिशूल उठाकर उन्हें मारने दौड़े, भृगु जी को जान बचा कर भागना पड़ा
अब विष्णु की परीक्षा होनी थी। भृगुजी विष्णु लोक पहुँचे। वहाँ उन्हें शेष शैया पर सोते देखा तो जगाने के लिए एक लात उनकी छाती में मारी।
विष्णु भगवान हड़बड़ा कर उठ बैठे। उनके चरण सहलाते हुए नम्रता पूर्वक बोले गुरुदेव आपके कोमल चरणों को मेरे कठोर हृदय से टकराने से कष्ट तो नहीं हुआ। कहिए मुझ सेवक के लिये क्या आज्ञा है।
भृगुजी गद्-गद् हो गये और बोले बड़प्पन की परीक्षा करने निकला था। सज्जनता और नम्रता से अशिष्टता और उद्धतता को जीतने की महानता तलाश करने कई जगह फिरा पर मिली आपके ही पास।
भृगुजी के निष्कर्ष से विष्णु भगवान को तीनों लोकों में बड़ा घोषित कर दिया गया।