बाबा मगनानंद जी की कुछ स्मृतियाँ

July 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री वीरेन्द्र सिंह वर्मा, खातौली)

1-माता के अनन्य भक्त बाबा मगनानंद जी की सेवा में एक नहीं कितने ही व्यक्ति रहते। एक बार दो भक्तों ने (धाबाई श्री रतनलाल जी व श्री सीताराम जी) संसार को मिथ्या जानकर यह निश्चय किया कि संसार को त्यागकर एक मात्र बाबा की सेवा में ही रहकर ईश्वर स्मरण किया जावे। आपस में सलाह हुई कि यों तो बाबा शिष्य बनावेंगे नहीं। अतः जब बाबा प्रसाद पाकर उठें तो उनके काठ के पात्रों में जो उच्छिष्ट बचे उसे उनके सामने खाकर बाबा से प्रार्थना की जावे कि हमें मार्ग बतलाइये। तथा अब अपनी शरण में ही हमें रखिये। हम आपके शिष्य हो चुके हैं। ऐसा निश्चय करके वे भोजन के समय बाबा के पास आये तथा उस समय की प्रतीक्षा करने लगे। आश्चर्य तो यह है कि उस दिन बाबा ने झूठन छोड़ना तो दूर रहा, बल्कि उन काठ के पात्रों को भी धोकर पी लिया। साथ ही उनको समझाया कि ऐसा करने में कोई लाभ नहीं। संसार में रहते हुए ही उच्च कोटि की साधना की जा सकती है। इन दो सज्जनों में से एक अभी जीवित है।

2- एक उत्सव के सम्बन्ध में एक दुकान के 92) तथा कुछ आने चावलों के धाबाई जी को अलसी की फसल पर दुकानदार को देने थे। इसके बाद बाबा शिवपुर (मध्य भारत) में जो खातौली से 14 मील है मोती हुई नामक स्थान पर जा विराजे। श्री धाबाई जी ऊँट पर चढ़कर शाम को बाबा की सेवा में अवश्य जाते तथा सबेरे कचहरी के समय तक वापिस खातौली लौट आते। अलसी आ जाने पर उसी दुकान पर भरवादी गई तथा उनके पीछे उनका आदमी जाकर अलसी के रुपये भी ले आया। दुकान के मुनीम ने अपने सेठ को चावलों के जो रुपये काटने थे उनका स्मरण कराया, परंतु सेठजी ने बिना उनकी उपस्थिति के कुछ जिक्र नहीं किया। तथा कहा कि धाबाई जी के आने पर देखा जावेगा। ठीक उसी समय बाबा ने मोती कुई पर धाबाई जी से फरमाया कि भाई! शायद चावलों के रुपये नहीं गये हैं, दे देने चाहिये। उक्त सज्जन ने निवेदन किया कि अलसी आ गई हैं, एक दो दिन में रकम जमा हो जायगी। इसके बाद वे ऊँट पर चढ़कर खातौली की ओर चल पड़े। रास्ते में क्या देखते हैं कि बीच सड़क में रुपयों की एक थैली पड़ी हुई है कि जिसमें पिच्चानवे रुपये हैं। उन्होंने थैली को ऊँट पर सामने रख लिया तथा विचारा कि यदि खातौली तक किसी ने थैली का पता आ पूछा तब तो ठीक, वर्ना बाबा ने ये रुपए चावलों के लिये ही प्रदान किए हैं। खातौली तक थैली का पता किसी ने नहीं पूछा और धाबाई जी ने चावलों के रुपये उसी दिन दुकान पर जमा कर दिये।

3- शेष बचे 2) या 2॥) रुपयों का गाँजा बाबा के लिये खरीद लिया। इस गांजे को खरीदते हुये मध्य भारत के एक जकाती ने उन्हें देखा था। स्वयं धाबाजी को तो किसी प्रकार का भय था ही नहीं। वे समझते थे कि बाबा के विषय में तो कोई मना भी नहीं करेगा, परंतु उस जमाती ने उनका ऊँट समेत चालान कर देने का मन ही मन संकल्प किया तथा इसे कार्य रूप में परिणत करने के लिये जकात पर से गुजरते हुए उन सज्जन को तम्बाकू पीने के बहाने बुलाकर प्रेम से बिठा लिया तथा चुपके से गिरदावर जकात को जो उस दिन वहाँ दौरे पर आया हुआ था, इशारा किया कि इस ऊँट पर थैले में गाँजा है। पहले तरकीब से देख लिया जावे परंतु गिरदावर के देखने पर गाँजा नहीं, बल्कि जरदा निकला। गिरदावर ने जकाती को बहुत फटकारा कि क्या इस तरह एक भले आदमी की प्रतिष्ठा बिगड़वाना चाहते हो। यह जकात खातौली से लगभग 4 फर्लांग दूर है। शिवपुर पहुँच कर जब धाबाई जी ने पहले बाबा को धोक दी तब बाबा ने ये शब्द फरमाये थे कि देखो भाई! मैं तो समझता रहूँ कि तुम खातौली हो तथा घर वाले यह समझें कि तुम मेरे पास हो, परंतु ऐसे कर्मों से तुम्हारा चालान होता फिरेगा। उत्तर में उनने यही निवेदन किया कि अब भविष्य में ऐसा नहीं होगा। खातौली वापिस लौटने पर उनको यह घटना सुनने को मिली।

4- मेरे नाना एक बार बाबा की सेवा में बैठें हुए थे। बाबा ने बैठे-बैठे फरमाया कि देख तू तो यहाँ बैठा हुआ है, परन्तु तेरे खलिहान में आज नुकसान हो रहा है। मेरे नाना ने उत्सुकतापूर्वक पूछा कि बाबा कैसे? इतना सुनते ही बाबा ने कहा कि देख यह जो बगूला उड़ता हुआ जा रहा है, इसमें तेरे गेहूँ भरे हुए हैं और ज्यों−ही बगूला (हवा का बवंडर) समीप आया, बाबा के यह फरमाने पर कि सब मत लेजा कुछ यहाँ भी रखजा लगभग 20-25 सेर गेहूँ का उस हवा के बवंडर में से ढेर लग गया।

बाबा के जीवन की ऐसी कई घटनाएँ हैं कि जिनको लिखने से एक छोटी पुस्तिका ही तैयार हो सकती है।

कार्तिक शुक्ल 12 को सम्वत् 1974 में दिन के 11 बजे आनन्दपूर्वक बाबा परमधाम को पधारे यह स्थान नागदा ग्राम के पास भूतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। बाबा अपनी स्वाभाविक मुद्रा से विराजे हुए थे तथा भक्त मण्डली से बातें कर रहे थे। अन्तिम समय जब आया तब बाबा ने नेत्र मूँदे तथा भक्त मण्डली से कहा कि कुछ माँगो। सब हाथ जोड़कर विस्मय से उनकी ओर देखने लगे। उसी समय बाबा की गर्दन झुकी तथा एक जोर की आवाज के साथ बाबा का आत्मा मस्तक को विदीर्ण करता हुआ परब्रह्म में लीन हो गया।

बाबा के जीवन से सैकड़ों व्यक्तियों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली। उनका जीवन तथा उनकी गाथायें अनूठी हैं। बाबा ऐसे स्थानों पर विराजे हैं कि जिस समय रात में बड़े-बड़े शेरों के भय से दल आदमी भी नहीं ठहर सकते थे, पर सिद्ध पुरुषों की सामर्थ्य को भला कौन आँके?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118