(श्री नर्मदा बाई शर्मा, खलघाट म॰ भा0)
मेरे पति देव लगातार बहुत दिनों से उपासना करते थे, उनके नियमित कार्य को देखकर मेरे मन में भी प्रबल इच्छा हुई कि मैं भी लगातार उपासना करूं। लेकिन कोई सुविधा न होने के कारण तथा छोटे-2 बच्चों का लालन पालन और उनकी पूर्ण जिम्मेदारी मुझ पर होने से, मुझे समय नहीं मिलता था, न पति देव का भी मुझ पर ऐसा प्रभाव था कि वे मुझसे कह सकें कि तुम भी माता की उपासना करो। गृहकार्य की पूर्णतया जिम्मेदारी मुझ पर ही होने से उचित समय नहीं मिलता था। इससे मैं भय खाती थी इस विषय पर मैंने एक दिन पति देव से पूछा क्या मैं उपासना नहीं कर सकती। पतिदेव ने कहा क्यों नहीं तुम पर तो माता की विशेष कृपा बहुत ही शीघ्र होती है। फिर मैंने कहा कि हमें संध्या के दोनों समय तो गृह कार्य अधिक रहता है फिर कैसे करूं तथा कब करूं तब उन्होंने कहा गृहस्थी पतिव्रता स्त्री को पति की सेवा के बाद, या गृहकार्य से पूर्ण निवृत्त हो जाने के बाद ही उपासना करनी चाहिए। तब से मैंने अपना नियम बना लिया है, मैं प्रातःकाल जप करने के बाद भोजन करती हूँ और सायंकाल जप करने के बाद सोती हूँ। इस प्रकार मेरा उपासना क्रम लगातार चल रहा है।
एक समय मेरा छोटा बच्चा दो साल का था और वह बहुत अधिक बीमार पड़ा। उसकी बचने की आशा नहीं दीखी। जब मैंने उसके दीर्घ जीवन की भीख माँगी और वह मुझे मिली। जब बच्चा स्वस्थ हुआ तब उसने थोड़े दिनों तक कई प्रकार के विचित्र चमत्कार बताए जप से बच्चा आज तक बीमार नहीं पड़ा और उसकी हालत, स्वास्थ्य, सुन्दरता, सद्गुण, और स्वभाव इतना अच्छा है कि मानों कोई होनहार बालक दिखाता है।
मेरे कहने से मेरी जिन दो बहिनों ने यह उपासना आरम्भ की है उनका भी गृहस्थ जीवन और वर्तमान परिस्थिति बहुत अच्छी है।
यह कहना किसी भी प्रकार उचित नहीं कि स्त्रियाँ गायत्री का जप न करें। स्त्रियों को पशु की तुलना में गिनने वाले संकीर्ण हृदय लोगों को यह सोचना चाहिये कि गायत्री माता भी तो नारी हैं। यदि नारी नीच और घृणित है, उसे वेद का, यज्ञ का, पूजा उपासना का कुछ भी अधिकार नहीं तो फिर गायत्री माता भी तो नारी है उन बेचारी की भी पुरुषों से पूजा उपासना करने का क्या अधिकार हो सकता हैं।
मैं विशेषकर उन बहिनों से निवेदन करती हूँ जिन्हें अपनी सास, पति अथवा अन्य जनों से त्रास होता हो, जिनका जीवन गरीबी से व्यतीत हो रहा हो तथा जिन्हें कोई गुप्त या प्रकट रोग हों या कोई आवश्यकता हो या अशान्ति हों। वे अन्य किसी का आश्रय छोड़कर अपना ध्यान वेदमाता गायत्री के चरणों में लगावें और उनसे प्रार्थना करें, उन्हें शीघ्र ही सब दुःखों से छुटकारा मिलेगा। वे समय की कोई चिन्ता न करें। माता को पुकारने का सदा ही समय है जब उन्हें क्लेश हों या अशान्ति हो, तथा आश्रय की आवश्यकता हो उस समय जिस परिस्थिति में ही एकदम माता का जप आरम्भ करो। उन्हें तत्काल फल मिलेगा तथा साधारण तथा नित्यकर्म में इतना नियम अवश्य रखें कि प्रातः किसी भी समय जप करने के बाद भोजन करें अथवा सायंकाल जप करने के बाद सोवें, तो माता उनकी प्रार्थना शीघ्र सुन कर उन्हें शीघ्र अच्छा फल देवेगी। जो जैसी कामना से जप करेंगी उन्हें वैसा ही फल मिलेगा। मैं निवेदन करती हूँ कि मेरी सुखी अथवा दुखी बहिनें इस उत्तम कार्य को कुछ दिन परीक्षण के तौर पर ही अनुभव करें कि वेदमाता कितनी जल्दी कृपा करती हैं। माता का प्यार पुत्रों की अपेक्षा पुत्रियों पर विशेष रहता है, ऐसा जानकर माता की शरण में जावें।