गायत्री जीवन की एक आवश्यकता

July 1954

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(श्री रामकृष्ण स्थापक “राकेश” बी. ए. लखनादौन)

गायत्री ब्रह्म की वह शक्ति है जिससे मनुष्य अपना सम्बन्ध स्थापित करके अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्ति कर सकता है। ईश्वर की शक्तियाँ अनेक रूप में इस विस्तृत ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं। उन सबमें प्रमुख शक्ति गायत्री ही है।

गायत्री का सर्वविदित लाभ यह है कि उससे हमारे पूर्वजन्मों के कुसंस्कार मिट जाते हैं और कुपात्रता दूर होती है। संस्कारी और सत्पात्र होना ही सच्चे अर्थों में गायत्री की शिक्षा ग्रहण करना है। जो लोग प्रायः अपने दैनिक जीवन की क्षुद्र कठिनाइयों के निवारण हेतु इस ब्रह्मशक्ति की सकाम उपासना करते हैं, वे इस प्रचण्ड शक्ति की महिमा से अनभिज्ञ हैं। बहुत बड़े दानी से जो कि सैकड़ों अशर्फियों और मुहरें दान दे रहा है यदि कोई याचक रोटी का टुकड़ा माँगे तो उस दानी व्यक्ति का अपमान करना है। माँगने वाले को पागल या अज्ञानी ही कहा जायगा। क्योंकि रोटी को तो कोई भी थोड़े परिश्रम से प्राप्त कर सकता है। यदि कोई वस्तु माँगनी ही हो तो देने वाले की योग्यता के अनुसार होनी चाहिये और साथ ही माँगने वाले को भी स्वयं माँगने वाली वस्तु के योग्य होना चाहिये। और जब इस प्रकार याचक और दाता दोनों योग्य होवें तभी किसी वस्तु का आदान प्रदान हो सकता है।

माँगने वाले को ऐसी कोई दुर्लभ वस्तु माँगनी चाहिये जो अपने प्रयत्नों से या साधारण साधनों के द्वारा प्राप्त न की जा सके। साँसारिक वस्तुओं को तो मनुष्य किसी न किसी रूप में अपने प्रयत्नों से प्राप्त कर ही लेता है। या मित्रों सम्बन्धियों आदि से माँगकर अपना कार्य चला सकता है। और यदि न भी मिले तो उस वस्तु विशेष के अभाव में भी अपना कार्य चला सकता है। कामना तो ऐसी दुर्लभ और मूल्यवान वस्तु की करनी चाहिये जो सरलता से प्राप्त न हो सके।

अब प्रभु उठता है कि ऐसी दुर्लभ और मूल्यवान् वस्तु क्या हो सकती है? वह है सद्बुद्धि सुसंस्कारिता, सत्पात्रता, दिव्यदृष्टि जिसने इन चीजों को प्राप्त कर लिया उसे फिर कोई वस्तु माता से माँगनी आवश्यक रह नहीं जाती है। गायत्री वेदों की माता है। वह क्रोध, लोभ, मोह आदि पापों का नाश करके मनुष्य को उत्तम मोक्ष की प्राप्ति कराती है। इस लोक में और परलोक में गायत्री से बढ़कर पापों को नाश करने वाली और कोई शक्ति नहीं है।

तप की महत्ता अनादि काल से लेकर वर्तमान काल तक चली आ रही है। पूर्व काल में तप ही प्रथम था तप के प्रभाव से ही वे लोग प्रतापी कहलाते थे। आजकल हम जिन्हें सुखी देख रहे हैं वह उनकी पूर्व संचित तपस्या का ही प्रभाव है। यह तपस्या ही धीरे-धीरे घट रही है यदि उसकी ओर ध्यान न दिया जावे तो आजकल के सुखी व्यक्ति भी बाद में क्षुद्र प्राणी सदृश्य हो जावेंगे। गायत्री के द्वारा ही तप साधन किये जाते थे और किये जाते हैं क्योंकि यही रास्ता एकमात्र सरल, सर्वसुलभ, हानि रहित, शीघ्र फलदायी और ग्रही-विरक्त स्त्री-पुरुष सभी के लिये सुसाध्य है।

जो व्यक्ति जिस वस्तु से लाभ उठाना चाहता है उसे उसके सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये। यदि किसी के पास बेशकीमती तलवार होवे और यदि वह उसे चलाना न जाने तो उसका तलवार रखना व्यर्थ ही है। गायत्री 24 अक्षरों का मन्त्र है जिसमें बीज रूप से उस महान् अध्यात्म विज्ञान की सभी बातें बीज रूप से मौजूद हैं इसलिए इसे भारतीय संस्कृति का बीज मन्त्र कहते हैं।

गायत्री को बहुधा लोग झाड़ फूंक का मन्त्र या जिससे धन, सन्तान, स्त्री, लाभ विजय प्राप्त हो सकती हैं, ऐसा समझते हैं। यह जानकारी अधूरी है हालाँकि ये उपरोक्त लाभ साधक को अपने आप प्राप्त होते हैं। गायत्री का सर्वोपरि महत्व यह है कि उसका एक एक अक्षर उन शिक्षाओं, आदर्शों और सिद्धान्तों पर प्रकाश डालता है जिनके द्वारा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को ठीक और सही तरीके से सुलझाया जा सके।

गायत्री विश्व धर्म है। गायत्री को यदि चारों वेदों के साथ तोला जावे तो वेदों से गायत्री का पलड़ा भारी होगा। यह वर्णन पुराणों में बड़े सुन्दर अलंकारिक ढंग से वर्णन किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य अन्य शिक्षाओं में कितनी ही योग्यता और विद्वत्ता प्राप्त क्यों न कर ले परन्तु जब तक उसे गायत्री के 24 अक्षरों में सन्निहित शिक्षाओं का ज्ञान प्राप्त नहीं है वह योग्य विद्वान् अनुभवी कुछ भी नहीं है। क्योंकि अन्य अनेक शिक्षाएँ तो केवल साधन और सुविधाएँ ही प्रदान करती हैं परन्तु गायत्री तो जीवन जीने की कला सिखाती है। यदि हमें सुखी बनना है तो सुख साधनों के प्रयोग की विधि जानना जरूरी है, तलवार रखने का लाभ उसे ही मिलेगा जो तलवार को चलाना जानता हो जीवन उसी का सफल है जो जीवन जीने की विद्या जानता हो। गायत्री गीता, गायत्री रामायण और गायत्री स्मृति के आधार पर यदि मनुष्य इन 24 अक्षरों में सन्निहित सिद्धान्तों पर ध्यान दे तो निश्चय ही मनुष्य सामान्य परिस्थितियों में रहते हुए भी स्वर्गीय सुख शान्ति का अनुभव करता हुआ अपने मानव जीवन को धन्य और सफल बना सकता है।

गायत्री उपासना मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यह केवल श्रद्धा, शास्त्रवचन, परम्परा धार्मिक प्रथा या विश्वास पर आधारित क्रियाकाण्ड नहीं है वरन् बुद्धि संगत, विज्ञान सम्मत एवं प्रत्यक्ष व्यवहार में उपयोगी, अनुभव उपस्थित करने वाला महासत्य है। मैंने इसी रूप में गायत्री को समझा है और तदनुरूप ही उसकी उपासना में सच्चे मन से संलग्न होने का संकल्प कर रहा हूँ।


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