(श्री मोतीलाल गोस्वामी, जगेली)
मेरे वंश में श्री सन्त भटुकनाथ बाबा के नाम से एक सिद्ध पुरुष अंदाजी आज से 500 वर्ष पूर्व हो चुके हैं। जो अभी तक, मालूम हुआ है कि, गिरिनार पर्वत पर जीवित हैं और अदृश्य रूप से रह कर गायत्री की तपस्या कर रहे हैं। उनके स्थान पर खण्डहर के रूप में अब भी पक्का मठ जंगल में मौजूद है, जहाँ पर अब भी हम लोग पूजा करने जाते हैं और जो आदमी कुछ सच्चे दिल से वहाँ जाते हैं और जो आदमी कुछ सच्चे दिल से वहाँ माँगता है प्रायः मिल जाता है। कहते हैं उस समय मुसलमानों का राज्य प्रायः सम्पूर्ण भारतवर्ष में था, तथा मुसलमान बादशाह मुसलमानी धर्म प्रचार करने का विशेष प्रयत्न कर रहा था, परंतु मेरे इलाके के बाबा के प्रभाव से मुसलमानी धर्म का प्रचार होने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिए धर्म प्रचारक सब बाबा को वहाँ से भगाने की कोशिश करने लगे। बाबा के साथी पर पुर्णियाँ में स्नान करते समय हाथी से पिचवाना चाहा उस हाथी को बाबा ने हाथ से ठेलकर गिरा दिया। अंत में उन लोगों ने बहुत से उत्सात करके हारने पर बाबा के मठ में गौ माँस बँधवा दिया, जिसको बाबा ने रसगुल्ला बना दिया, परंतु उस स्थान पर से उनका मन उखड़ गया तथा एक रात को अपने साथियों के साथ न मालूम किधर चले गये, जाने के पहले ही अपने भाई को अपने स्थान पर बुलाकर बहुत कुछ समझाकर बहुत तरह से आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम्हारा वंश बराबर चलता रहेगा तथा बराबर सुखी रहेगा। जाने की रात में अपने स्थान के चारों तरफ 1200 कौड़ी बाँस का बाड़ा एक ही रात में उत्पन्न कर दिया जो अब भी कुछ बाँस तथा जंगलमय हैं। उनके जाने पर वहाँ की जनता तथा बनैली के राजा साहब को बहुत दुःख हुआ। पीछे एक सिद्ध पुरुष से ही राजा साहब को पता लगा कि वे गिरिनार पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं।