गत मास सरस्वती यज्ञ और साँस्कृतिक शिक्षण शिविर गायत्री तपोभूमि में सानन्द सम्पन्न हो गया। देश के कौने-कौने से आये हुए लगभग 50 सुशिक्षित छात्रों ने इसमें शिक्षा प्राप्त करने के निमित्त भाग लिया। प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति का कैसा महत्वपूर्ण प्रचार रहता होगा इसका एक छोटा सा दृश्य प्रत्यक्ष रूप से आँखों के सामने आ जाता था। सब लोग श्रमदान, आश्रम की सफाई, पौधों की सिंचाई, जल भरना आदि कार्य स्वयं ही पूरा कर लेते थे। किसी नौकर की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। केवल दो ही बार परम सात्विक ढंग से बनाया हुआ भोजन करने से छात्रों की भोजन सम्बन्धी अनेक बुरी एवं अनावश्यक आदतें छूट गई। सभी छात्रों को भारतीय वेशभूषा में रहना, कन्धे पर पीले दुपट्टे डालकर ब्रह्मचारी के रूप में रहना बहुत ही भला मालूम पड़ता था।
प्रातः काल 4 बजे सब लोग सोकर उठ बैठते थे। शौच, श्रमदान और स्नान से 6 बजे से निवृत्त हो जाते थे। छः से आठ बजे तक छात्रगण सरस्वती यज्ञ में सम्मिलित रहते थे। यह यज्ञ आगन्तुक छात्रों के मस्तिष्कों में बुद्धि वृद्धि एवं सद्गुणों के विकास के लिए शास्त्रोक्त विधि से किया गया था। इसमें कमल पुष्प, ब्राह्मी आदि बुद्धिवर्धक औषधियों के हवन का विशेष आयोजन था।
यज्ञ के बाद शिक्षण कार्य प्रारम्भ होता था। डॉ0 परशुराम शर्मा ईश्वर प्रार्थना करते थे। इसके बाद आचार्य जी का गायत्री का एक-एक शब्द को आधार मानकर भारतीय संस्कृति के अनुकूल जीवन यापन करने की पद्धति पर भाषण होता था। तदनन्तर प्रो0 रामचरण महेन्द्र मनोविज्ञान शास्त्र के आधार पर बुरी आदतों और विचारधाराओं को छोड़कर मानसिक संस्थान के पुनर्निर्माण के सम्बन्ध में व्यावहारिक सलाह देते हुए भाषण करते थे। दस बजे से तीन बजे तक छात्रगण भोजन विश्राम और निर्धारित स्वाध्याय करते थे। डायरी लिखते थे, बताये हुए विषयों पर नोट तैयार करते थे। जिनको जाँच करके उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण होने के नम्बर दिये जाते थे।
तीन से छः बजे तक फिर शिक्षण शिविर होता था। जिसमें डॉ0 परशुराम शर्मा पं0 अशर्फी लालजी मुख्तार बिजनौर, पं0 गौरी शंकर द्विवेदी, चन्दवाड़ मथुरा के उच्च कोटि के प्रतिष्ठित नागरिक एवं विद्वान भाषण दिया करते थे। छः से सात बजे तक लाठी चलाने की शिक्षा दी जाती थी। सात बजे के अनन्तर शौच स्नान से निवृत्त होकर भोजन होता और प्रार्थना करके सब लोग सो जाते। दोपहर के विश्राम के 5 घण्टों में एक एक करके महेन्द्र जी तथा आचार्य जी छात्रों को व्यक्तिगत परामर्श सुझाव और पथ प्रदर्शन करने के लिए एकान्त में बुलाते रहते। छात्रों के व्यवहार, रहन सहन, बातचीत आदि में उन्मत्तता उत्पन्न करने का विशेष ध्यान रखा जाता था। एक दिन वृन्दावन यात्रा हुई। वृन्दावन के सभी महत्वपूर्ण स्थान प्रो0 वृज भूषण जी एम. ए. ने बड़े ही परिश्रमपूर्वक दिखाए। एक दिन मथुरा की परिक्रमा बने नंगों पैर दी और मथुरा के महत्वपूर्ण स्थानों का दर्शन किया।
यह शिविर सब दृष्टियों से बड़ा सफल रहा। छात्रों पर भारी प्रभाव पड़ा और वे जीवन में बहुमूल्य परिवर्तन लेकर गये है। जिनका विस्तृत विवरण अगले अंक में उन छात्रों या उनके अभिभावकों द्वारा लिखा हुआ उपस्थित किया जायगा। हर महीने शिक्षण शिविर करने की योजना को अभी कुछ समय के लिए स्थगित रखा गया है। इस वर्ष चार-चार महीने बाद ऐसे ही आयोजन होंगे। अगला शिविर आश्विन की नवरात्रि में 10 दिन के लिए होगा। इसमें आने के लिए अभी से तैयारी करनी चाहिए।