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July 1954

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जोति सरूपी हिय सवै, सब शरीर में जोति। दीपक धरिये ताक में, सब घर आभा होति॥ देखत है जग जात है, तउ ममता सो मेल। जानत हूँ मानत नहीं, देखत भूलौ खेल॥ जेहि जेतो निहचै तित, देत दई पहुँचाय। सक्कर खोरे को मिलै, जैसे सक्कर आय॥


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