गायत्री की शरण से नवजीवन दान

July 1954

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(श्री रामेश्वर शर्मा, अध्यापक धरम पुरी)

मेरा इकलौता पुत्र दो बार बहुत अधिक बीमार हुआ उस समय मैं घर से बाहर 1 मील दूर था लेकिन वेदमाता की शरण में रहने से उसे किसी प्रकार का कोई संकट नहीं आया?

जिस समय मेरा बच्चा पहली बार बीमार हुआ उस समय इसे सूखा रोग हो गया था और इसके बचने की कोई आशा नहीं रही तथा मैं बच्चों की चिकित्सा से बिल्कुल अनभिज्ञ था कि इनकी चिकित्सा किस प्रकार की जाती है।

इस चिंता से दुःखी होकर एक दिन मैं अपने परिचित साथी के पास खलघाट आया और उनसे सारा हाल कहा। उन्होंने मुझे सब प्रकार से धैर्य बंधाया और कहा कि प्रत्येक कार्य को गायत्री माता के आश्रय में छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए सफलता अवश्य मिलती है मैंने उनके कहे पर विश्वास किया और गायत्री जप के साथ दवाई देना शुरू किया, बच्चे का सूखा रोग मिट गया और एक माह में बच्चा पूर्ण तन्दुरुस्त हो गया, तब से मेरा आत्म विश्वास दृढ़ हो गया और मैं माता की उपासना और अधिक लगन से करने लगा।

दूसरी बार बच्चा बीमार पड़ा, इस बार उसे ब्रेंको निमोनिया, और डिप्थेरिया हो गया। आशा निराशा में परिणत हो गई, क्या किया जाय कुछ समझ में नहीं आता था, मैं शान्त होकर बैठ गया और माता से प्रार्थना करने लगा, तथा मेरे साथी महोदय ने विशेष रूप से किये गये गायत्री यज्ञ की भस्म बच्चे को लगाई, जिससे उसे शान्ति मिली और आशा बंधी। दो चार दिन की साधारण चिकित्सा के बाद उसे आराम हुआ। कुछ भी हो गायत्री मन्त्र में संजीवनी शक्ति विद्यमान है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव मैंने किया है।

आज से मैंने अपना जीवन वेदमाता की सेवा और प्रचार में लगाया है। मैं बहुत अधिक समय यथा तन मन धन से माता की उपासना करता हूँ। इसके फलस्वरूप मुझे आरोग्यता, ज्ञान, प्रतिष्ठा, और उन्नति की दशा का अनुभव हो रहा है। भविष्य में मैं क्या बन जाऊँ यह कह नहीं सकता। इतनी सरल और कष्ट रहित साधना जो नहीं करें उनके समान अभागा इस दुनिया में और कौन है। मेरे अनुभव तथा मेरा दृढ़ विश्वास इस बात का द्योतक है कि वेदमाता गायत्री की शरण में रहने वाला कभी भी दुःखी नहीं रहता है।


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