एक सच्ची घटना

July 1954

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(श्री मन्नूलाल तिवारी, पिछोर झाँसी)

मैं पिछोर झाँसी (मध्य भारत) का निवासी हूँ। जाति ब्राह्मण है, शिक्षा हिन्दी मिडिल व हिन्दी विशारद है, आजकल ग्रामीण पाठशाला में अध्यापक हूँ। मुझे माता गायत्री का जो अनुभव हुआ है उसे अपने भाइयों के समक्ष प्रकट कर रहा हूँ। गत जुलाई सन् 53 में 4 तारीख को मैं दस्तों की बीमारी में ग्रस्त हुआ और मुझे बहुत ही खूनी दस्त प्रारम्भ हुए। यहाँ तक कि 100-150 तक हो गये बहुत कमजोर हो गया था। भूख व नींद जाती रही। कई दवाइयाँ की किन्तु सफलता नहीं मिली। हताश होकर मैं अपना अधिकाँश समय गायत्री उपासना में लगाने लगा।

एक दिन 4॥ बजे के समय कुछ नींद सी आई तो मैं सोच रहा था कि सभी उपचार हो चुके किन्तु तबीयत ठीक नहीं होती अब तो हे माता! मृत्यु हो जाना उचित है। तो मैं स्वप्न में क्या देखता हूँ कि पश्चिम दिशा की ओर से वेदमाता शेर पर आरुढ़ हुई पूर्व की ओर को आ रही हैं। मैं उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देखकर कहता हूँ कि कोई यह संन्यासिनी है। माता मेरे सिर पर हाथ रखकर कहती हैं कि मैं संन्यासिनी नहीं हूँ, वेदमाता हूँ। मैं रोकर माताजी से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी क्या ऐसी दशा रहेगी मैं तो मरा जा रहा हूँ। तो माता ने वरदान दिया कि अब ऐसी दशा न रहेगी। इतने में शेर ने मेरा बाँया हाथ पकड़कर खूब जोर से चूसा और हरा नीला सा जहर निकालकर कहा कि मैंने तेरे हाथ से जहर चूस लिया जाओ अच्छे हो जाओ।

इस स्वप्न ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया। माता का सन्देश सफल होने लगा। बीमारी घटी और कुछ ही दिनों में खूनी दस्त बिल्कुल बन्द हो गये। मैं बहुत शीघ्र अच्छा हो गया जो कि छः माह में ठीक नहीं हो सकता था। आज भी वह दृश्य मेरे सामने आँखों में समाया हुआ है।

दूसरे मेरा एक जगह से स्थानान्तर नहीं होता था, जो माता की कृपा से हो गया। इसके बाद इच्छित स्थान की प्राप्ति हुई है और वहाँ एक बाई महाराज जो उच्च कोटि की तपस्विनी सती साध्वी हैं, उनका दर्शन तथा सत्संग का अच्छा जीवन में अवसर प्राप्त हुआ है। ऐसे कई और भी अनुभव हैं जो महत्वपूर्ण हैं। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जो कार्य किसी और मन्त्रों से पूर्ण हो सकता है वह गायत्री से भी शीघ्र हो सकता है।


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