(श्री रामसहाय जी तिवारी, झाँसी)
मैं रेल चलाने की नौकरी करता हूँ। कुछ वर्ष पहले माघ मास में मैं एक दिन गाड़ी लेकर इटारसी गया हुआ था। इसी दिन धर्मपत्नी ने भूल से एक बड़ी गलती कर डाली। पत्थर के कोयलों की जलती हुई सिगड़ी घर के अन्दर रख कर किवाड़ बन्द करके वह सो गई। उस दिन ठण्ड अधिक थी। धर्मपत्नी ने सोचा रात को एक बजे मैं घर आऊँगा तो अँगीठी के पास बैठ कर गरम हो लूँगा और गरम भोजन करूंगा। पर उन्हें यह मालूम न था कि पत्थर के कोयले की गैस क्या हानि करती है। रात को 1 बजे जब मैं घर लौटा तो देखा कि पत्नी तथा बच्चा मृत-तुल्य अवस्था में पड़े हुए हैं। डॉक्टर का इलाज आरम्भ कराया गया पर उनकी स्थिति देखकर किसी को विश्वास न होता था कि वह बच सकेंगे। इलाज हो रहा था और मैं उनके समीप बैठा हुआ गायत्री माता को पुकार रहा था। गायत्री माता तक ही मेरी दौड़ थी, उन्हीं के चरणों में मन अटका हुआ था। वे जिस पर कृपा करें उसकी सभी विपत्तियों को टाल सकती हैं।
60 घण्टे बाद उनको होश हुआ। दोनों मृत्यु के मुख में से वापस लौट आए। तब से हम दोनों “पति-पत्नी” विशेष श्रद्धापूर्वक गायत्री उपासना करने लगे। माता ने हमें एक और पुत्र दिया उसका नाम सूर्य नारायण रखा गया। उसमें कुछ विशेषताएँ ऐसी ही हैं जिससे यह नाम रखना पड़ा।
गायत्री की नियमित उपासना करने से पूर्व मुझ में कई दुर्व्यसन थे। तम्बाकू, सुपारी इतनी खाता था कि एक मिनट भी उनके बिना नहीं रह सकता था। इंजन में रहने वाले को वैसे ही सारे समय भारी गरमी का सामना करना पड़ता है। इस पर भी तम्बाकू खाने की इतनी भरमार। इसका प्रभाव स्वास्थ्य पर बुरा ही पड़ रहा था, पर आदत से मजबूरी थी। पैसा भी बहुत खर्च होता था और स्वास्थ्य भी बिगड़ता था। मैं चाहता था कि इसे छोड़ दूँ पर छूटती न थी। आदत ने इतना मजबूर कर रखा था कि छोड़ने के सभी विचार निष्फल हो जाते थे। पर गायत्री उपासना आरम्भ करने पर मेरे भीतर से कुछ ऐसा आत्मबल बढ़ा कि साहसपूर्वक तमाखू छोड़ने का संकल्प किया और जो बात असम्भव दीखती थी वह सम्भव हो गई। तमाखू दुष्टिनी से मेरा पीछा छूटा और स्वास्थ्य तथा पैसा की भयंकर बर्बादी से बचत हो गई।
यों मेरी कुछ विशेष साधना नहीं है पर इस छोटी सी साधना का ही एक चमत्कार सुनिये। हमारी जन्म भूमि घीसामिसर का पुरवा नामक गाँव में है जो सुल्तानपुर जिले में है। छुट्टी पर एक बार घर गया हुआ था। दरवाजे पर बैठा रामायण पढ़ रहा था कि पड़ौसी की धोबिन के रोने धोने का कोलाहल मचा। मैं रामायण बन्द करके वहाँ गया तो देखा कि उसका बच्चा मर रहा है। बच्चे को हाथ से जाते देखकर माता का रोना स्वाभाविक ही है। मैं जानता था कि मृत्यु से किसी को बचाना कठिन है फिर भी प्रयत्न करने में क्या हानि? मैंने गायत्री मन्त्र से जल अभिमंत्रित किया और बच्चे को पिलाया तथा उस पर छिड़का। माता की कृपा हुई और बालक की स्थिति तत्काल सुधरने लगी। एक दो दिन में ही बच्चा स्वस्थ हो गया। यह घटना चारों ओर फैली, लोग मुझे कोई बड़ा मंत्र शक्ति सम्पन्न सिद्ध पुरुष मानने लगे और अपनी-अपनी कठिनाई लेकर मेरे पास आने लगे। मैं इस झंझट से घबराया और छुट्टी अधूरी ही छोड़कर घर से वापिस लौट आया।
तब से मैं और भी अधिक श्रद्धा भक्ति के साथ माता का भजन करता हूँ। मेरी आत्मिक तथा साँसारिक उन्नति हो रही है।