अनेक आपदाएँ टलीं

July 1954

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(श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा, मेवानगला)

गत वर्ष मैं होली से पहले अपनी बहिन लिवाने देवा नामक ग्राम जिला मैनपुरी में गया। तो वहाँ से मुझे नहीं आने दिया। मेरा तो नियम ही था पूर्णिमा को हवन करने का सो मैंने हवन विधि सहित किया। दूसरे दिन जब होली का गाना बजाना वहाँ के मुखिया के घर से शुरू हुआ तो मुखिया अपने 4-5 वर्ष के बच्चे को गोदी में लिये था और बच्चा सो गया। सो मुखिया उस बच्चे को चारपाई पर सुलाने गये और बच्चे को ज्यों−ही सुलाया वैसे ही मुखिया के हाथ में बिच्छू ने काट लिया और काटते ही उन्होंने एक दम जैसे बच्चे को छोड़ा वैसे ही बच्चा भी काट लिया। वहाँ बिच्छू बहुत चढ़ता है और थाली से उतरता है। अब वहाँ होली बन्द हो गई और सभी लोग घबड़ा गये और थाली बजने लगी जस होने लगे बच्चे के काटे में मुखिया तो अपना दुःख भूल गये और उनका विष उतर भी गया। परन्तु बच्चे का विष थाली से भी नहीं उतरा और झाग डाल गया तो स्त्रियाँ रोने लगीं और सारा गाँव हाहाकार करने लगा।

इतने ही में किसी ने मेरा पता दिया कि ज्वाला प्रसाद इलाज करते हैं। अब मेरे पास एक आदमी बहुत घबड़ाया हुआ आया और मुझे सारा हाल बताया। अब मेरे पास कोई औषधि तो थी ही नहीं फिर भी मैं गुरुदेव तथा भगवती गायत्री का नाम लेकर यज्ञ की भस्म लेकर वहाँ गया तो देखा कि सभी लोगों की बड़ी असहनीय दशा थी और उस बच्चे के शरीर पर अनेकों दवाएं लगी हुई थीं। मैंने सारी दवाओं को साफ कराया और गायत्री मंत्र पढ़कर उसके शरीर पर भस्म की मालिश की और मालिश करते ही दो मिनट के अन्दर उसकी दाँती खुली। दाँती खुलते ही मैंने कुछ भस्म उसको गंगाजल के साथ पिलाई, पीते ही बच्चा कुछ रोया और फिर शान्त हो गया। फिर मैंने कहा सब लोग यहाँ से चले जाओ बच्चे को सोने दो फिर बच्चा सो गया और सुबह को ठीक उठा।

एक घटना अभी हाल में हुई। हमारे सगे भाई अनुसार नाधै जिला बदायूँ में रहते हैं। खबर सुधार लेने वहाँ गया था तो देखा कि हमारी भाभी को भूतोन्माद हो गया जो रात्रि आदि में चाहे जहाँ चल देती, अंट संट बातें करती, कुछ खाती न पीती और सब घरवालों से झगड़ती। एक दिन मैं सन्ध्या कर रहा था इतने में उनकी हालत बहुत खराब हो गई तो उनका भतीजा भागा हुआ आया और बोला कि सन्ध्या फिर करना पहले घर आओ, माता जी को बहुत गड़बड़ी है। मैं माला जप रहा था और पूरी करके वहाँ पहुँचा तो जैसे ही नब्ज़ देखने को हाथ बढ़ाया वैसे ही बहुत जोरों से उठने लगीं और बोली मुझसे कि तू यहाँ भी आ गया तेरे घर तो मेरी दाल गली नहीं। फिर मैंने कहा कि तू कहाँ से आया है मैं तुझे यहाँ भी नहीं रहने दूँगा मैंने कहा इसको डाँटों और गंगाजल मँगाया फिर मैंने गंगाजल अभिमन्त्रित करके दिया कुछ ही देर में शान्ति मिली और मैंने विचार किया कि यदि न गया तो इसके हाथ से गायत्री यज्ञ कराऊँगा परन्तु उनको उसी दिन से आराम हो गया।

इसी प्रकार हमारे भतीजे की शादी होकर आई तो उसकी बहू के पेट में इतना विकट दर्द हुआ कि बेचारी दर्द से सारे घर में लोटी लोटी फिरे और उनको अनेक दवाइयाँ दी कुछ फायदा न हुआ। तब मैंने अभिमन्त्रित करके जल और गंगाजल मिलाकर पिलाया, पीते ही वह आराम से सो गई और इसी प्रकार की अनेक घटनाएँ और भी मुझे हुई और होती रहती हैं। विस्तारमय से नहीं लिख रहा हूँ और सत्संग वगैरह के तो अवसर मिलते ही रहते हैं।


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