(श्री पुरुषोत्तम दास मगन लाल पटेल, सरढ़व)
कुछ वर्ष पूर्व में बड़ी आर्थिक कठिनाई में फँस गया था। साधारण काम काज था पर दुर्भाग्यवश 12 हजार रुपया नुकसान हुआ और कर्जे का भारी बोझ सिर पर चढ़ गया। लेनदारों के तकाजे पर तकाजे हो रहे थे पर अदायगी की कोई सूरत नजर न आती थी। कई बार तो लज्जा और घृणा से आत्महत्या तक करने को जी चाहता था।
कोई मार्ग न सूझने पर मैंने गायत्री उपासना का सहारा लिया। कुछ समय पूर्व मैंने गायत्री की महिमा सन्त महात्माओं से सुनी थी। अहमदाबाद के एक सज्जन ने भी इस सम्बन्ध में मुझे बहुत कुछ बताया था। अखण्ड-ज्योति को भी देखा था और उससे प्रेरणा प्राप्त की थी। उन सब बातों की प्रतीक्षा करने का यही अवसर था। मैंने पूरी भक्ति भावना के साथ गायत्री उपासना आरम्भ कर दी और प्रतीक्षा करने लगा कि देखें किस प्रकार मुझे इस ऋण भार से मुक्ति मिलती है।
काफी समय उपासना करते बीत गया पर कोई चमत्कार न दीखा। निदान भीतर से ऐसी प्रेरणा हुई कि अपना जो मकान है उसे बेचकर ऋणदारों को चुका दिया जाय। माता जी की कृपा से कीमत अच्छी आई। मकान अच्छे दामों को बिका। आवश्यक कर्जे चुका कर शेष का एक छोटा मकान और खरीद लिया। जैसे ही एक छोटा मकान और खरीद लिया कि उसके भी महंगे दाम के खरीददार लग गये। आखिर उसे भी कुछ मुनाफा लेकर बेचा और बचत के रुपये ऋण में चुकाये।
इस प्रकार की लौट पलट कई बार की। इन्हीं मकानों की खरीद बेच में सारा ऋण केवल मुनाफे में चुक गया और रहने के लिये जैसा पहले मकान था उसी सुविधा का दूसरा लाभ में बच गया। इस प्रकार केवल लौट फेर तो करनी पड़ी पर मकान भी बच रहा और कर्ज भी चुक गया। जो थोड़ा पैसा बचा उससे दुकान आरम्भ की जो अब अच्छी चलती है और सब कार्य शान्तिपूर्वक होते चलते हैं।
अब मेरा प्रतिदिन तीन हजार गायत्री जप नित्य होता है। दो ढाई मास से गाँव से दूर खेत में जो झोंपड़ी है उसी में जप तथा हवन करने की व्यवस्था की है। इस प्रकार दुकान के कार्य से बचे हुए समय को एकान्त साधना में लगाकर विरक्त जीवन व्यतीत करने का अवसर मिल रहा है। दुकान चलाने के लिए एक विश्वस्त साथी भी माता की कृपा से मिल गया है। जिसके कारण पूजा पाठ तथा व्यापार में किसी प्रकार अड़चन नहीं होती।
माता की कृपा से सभी कुछ सम्भव है। उनकी कृपा से पर्वत जैसी दीखने वाली कठिनाई, राई जैसी हल्की होकर समाप्त हो सकती है। मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है।