बाघ को भी परास्त करने वाला अस्त्र

July 1954

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(श्री मुनिलाल चौधरी, मोतिहारी)

मेरे एक मित्र है। नाम रघुनाथ शुक्ल ग्राम बसवरिया पोस्ट मोतिहारी जिला चम्पारन। बसमैत ब्राह्मण है। गत वर्ष शत्रुओं ने इन पर लूट और कत्ल करने का मुकदमा लगा दिया। गिरफ्तार होने पर जमानत भी न होती थी इसलिए वे अपने बचाव के लिए नेपाल की सीमा में चले गए और अपने छुटकारे के लिए गायत्री उपासना करने लगे।

एक दिन वे पहाड़ के रास्ते सायंकाल को सात बजे एक जगह जा रहे थे। रास्ते में क्या देखते हैं कि उनसे 15-20 गज की दूरी पर बीच रास्ते में एक बड़ा विशालकाय बाघ बैठा हुआ है। मनुष्य को इतना पास देखकर बाघ उठकर और खड़ा हो गया। शुक्ल जी को ऐसा लगता था कि क्षण भर में वह हमला करने वाला है। हाथ खाली थे कोई हथियार भी पास में नहीं था जिससे आत्म रक्षा करते। विवश वे मृत्यु की घड़ी गिनने लगे। ऐसे समय पर उन्हें एक उपाय सूझा कि मन ही मन तीव्र भावना के साथ गायत्री माता को पुकारने लगे, गायत्री मन्त्र का जप करने लगे। वे सोचते थे कि यदि प्राण न बच सके तो भी गायत्री मन्त्र का जप करते हुए मरने से आत्मा की सद्गति ही होगी।

शुक्ल जी का यह हथियार अचूक निकला उसने दुनाली बन्दूक का काम किया। गुर्राता हुआ बाघ पानी-पानी हो गया। उसने उठी हुई गर्दन नीचे झुकाई और कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ चुपचाप चला गया और दूर जाकर उधर से पीठ फेर कर खड़ा हो गया। शुक्ल जी उसकी बगल से सकुशल निकल गये।

इस घटना के बाद अनन्य गायत्री भक्त बन गये हैं। उनकी आपदाएँ एक-एक करके सभी शान्त होती चली जा रही हैं। गायत्री की शक्ति की तुलना का और कोई अचूक हथियार इस संसार में नहीं है। इसी से उसे “ब्रह्मास्त्र” कहा जाता है।


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