उन्नति की ओर प्रगति

July 1954

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(श्री ओउम प्रकाश त्यागी, सीकरी बुजुर्ग)

गत वर्ष मैंने नित्य दो मालाओं का नियम कर खा था। गायत्री लेखन के कारण मानसिक अवस्था माता के चरणों में ही रहती थी। रात को सोते व वह को उठते समय का ध्यान भी चलता है। दिन में भी ज्यादा समय माता का स्मरण बना रहता है। इस वर्ष मैंने आश्विन के नवरात्रों का अनुष्ठान भी किया है।

समय पाकर मैंने चालीस दिन का सवा लाख का एक अनुष्ठान भी कर लिया है। इस अनुष्ठान से मेरा बड़ा हित हुआ है। सबसे पहला स्वास्थ्य लाभ दूसरा हमारा पति पत्नी का पारिवारिक कलह प्रायः समाप्त ही समझना चाहिए। यह कलह मेरे जीवन में सबसे बड़ी परेशानी थी जिसके कारण किसी भी काम में चित्त न लगता था। इस समय माता की बड़ी कृपा है। अनुष्ठान के बीच में ही ऐसे कारण बनने लगे थे जिससे पैसे की कमी से फिक्र न होती थी।

आत्मिक शान्ति यदि मुझे ही हो होती तो कोई आश्चर्य की बात न थी। मेरी पत्नी तथा बच्चे व मेरे चौथे भाई के परिवार में भी बहुत शाँति है। हम दोनों भाई एक ही हवेली में रहते हैं ऐसा ज्ञात होता है माता पूरी तरह प्रसन्न हैं। जिस कमरे में मैं पूजा करता हूँ किसी समय भी जब उसमें घुसता हूँ तो ऐसा मालूम होता है कि मेरे अन्दर कोई शक्ति विराजमान है, घुसते ही अन्तः करण खुशी से गदगद होने लगता है।

मैं पहले से भी गायत्री का जाप किया करता था। जिसके कारण कई बार अच्छी नौकरी पर भी पहुँचा। कई बार मुझे बड़े संकटों से बचाया। उस समय मैं यह न समझ पाया कि वह सब माता का प्रसाद है। अब मुझे उस सबका स्मरण होता है तो दिल गदगद हो उठता है। एक बार तो मैं दिल्ली में ट्राम के नीचे आ गया था, साईकिल पर सवार था क्षणभर में सब कुछ हो गया यह भी पता न चला कि किधर से उसके नीचे पहुँचा। निकलने पर साईकिल एक तरफ ठीक हालत में पड़ी मिली, मेरे भी खास चोट न आई साईकिल उठाकर दफ्तर चला गया।

अब मेरा यह प्रण है कि सामर्थ्य के अनुसार माता की सदा सेवा करता रहूँगा। गायत्री प्रचार को बढ़ाने में सहायक बनूँगा। हम छः प्राणी हैं, मैं, मेरी स्त्री, दो लड़के व दो लड़की, सब ही माता के दास हैं। माता को याद करते रहते हैं। मेरे कई सम्बन्धी व मित्र मेरे विचार के बनते जा रहे हैं।


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