आपत्ति ग्रस्तों की सहायता

July 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री स्वामी योगानन्द जी सरस्वती अशोकगढ़)

गायत्री हृदय रूपी मानसरोवर में प्रकट होकर सपरिवार साधक को भवसागर से पार ले जाती है। गायत्री साधना के फलस्वरूप सूक्ष्म शरीर के कुछ गुप्त, कोषों, चक्रों, गुच्छकों, ग्रंथियों का विकास होता है, जिसके कारण दिव्य शक्तियों का बढ़ना अपने आप शुरू हो जाता है। बुद्धि की तीव्रता, शरीर की स्वस्थता, सत्पुरुषों की मित्रता, व्यावसायिक सहायता, कीर्ति, प्रतिष्ठा, पारिवारिक सुख-शान्ति, सुसन्तति व्याधियों से निवृत्ति, शत्रुता का निवारण सरीखे अनेकों लाभ अनायास ही मिलने लगते हैं। कारण यह है कि आत्मबल बढ़ने से, दिव्य शक्तियाँ विकसित होने से, गुण कर्म स्वभाव में आशाजनक परिवर्तन हो जाने से अनेक ज्ञात अज्ञात बाधाएँ हट जाती हैं और सूक्ष्म तत्व अपने में बढ़ जाते हैं, जो उन्नति की ओर ले जाते हैं।

सन् 1952 ई. में आपने जो अखण्ड-ज्योति गायत्री अंक पढ़ा होगा, उसमें मेरा आग्नेयास्त्र सम्बन्धी लेख पढ़ा होगा, वह इस दास का साधारण अनुभव था। माता गायत्री सर्व शक्तिमान है इसलिए इसमें अचम्भे की कोई बात नहीं है उसकी शक्ति अनन्त है जिसका वर्णन वेद भी नेति-2 करते हैं।

1952 ई. में मिर्जापुर नगलिया में गायत्री पाठशाला चल रही थी उस समय की बात है यहाँ पर एक नदी बहती है और उस नदी की गोचर भूमि में चार पाँच गाँव की गाय चरती हैं। उसको असुर वृत्ति के लोगों ने कब्जाना चाहा। और गऊ वालों ने रोका तो उसमें कुछ झगड़ा हो गया था, असुर वृत्ति वाले लोगों ने पुलिस को अपने पक्ष में मिला लिया था उनकी मदद करने को वहाँ आये। और उनकी गाय हरली तो नगरिया में बैठक हुई सब लोग अपनी कह रहे थे। मुझसे बूझा कि स्वामी जी आप भी कुछ मदद करेंगे या नहीं, मैंने कहा मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ लोगों ने कहा आल्हा और ऊदल की सहायता अमर गुरुदयाल करते थे उसी प्रकार आपको हमारी सहायता करनी होगी। भगवान श्री कृष्ण जी ने तो गऊ खुद चराई थी। तुम्हारा तो गायों की सेवा करना धर्म है। इसके बाद उसमें एक सभा हुई और उनमें सरपंच लाल सिंह वर्मा भी थे। वह सब मिलकर वहाँ आये कि जहाँ पर गऊ थीं, तो दरोगा जी ने सबको गिरफ्तार कर लिया, और उन सब लोगों को बुलन्द शहर जेलखाने भेज दिया। और मुकदमा चलाना शुरू किया, जो लोग पकड़े गये थे उनका पक्ष न्यायपूर्ण था। मुझे उन पर दया आई मैंने गायत्री शक्ति का सहारा लिया। माता गायत्री का विशेष साधन करने लगा आठ ही दिन कर पाया था कि नौवें दिन जेल में 3 बजे कैदियों को माता का दर्शन हुआ माता ने कहा आज चार बजे ही को घर आ जाना तुम लोगों को कोई नहीं रोक सकता है। ऐसा ही हुआ उन लोगों को कैद से रिहा किया और चरागाह भी उनको दे दिया गया। उन लोगों ने मिलकर गायत्री यज्ञ किया और प्रसाद भी बाँटा।

ठा. रामचन्द्रजी वर्मा बड़ी मुसीबत में फँसे थे उनके बालकों को ससुराल वाले नहीं भेजते थे और वह टुकड़ा-2 को तंग थे, वह हमारे पास आये और हमसे कहा स्वामीजी मुझे ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरे बालक मुझे मिल जाये, तो आपका बड़ा अहसान होगा, मैंने इतवार का उपवास बताया। उसने ऐसा ही किया, माता की कृपा से उसे आर्थिक उन्नति भी हुई और उसके बालक भी मिल गये जब से वह इतवार का व्रत रखता है और माता की थोड़ी बहुत उपासना भी करता है।

मंगलपुर के राधारमन गुप्ता को शादी की बड़ी चिंता थी, माता की थोड़ी ही उपासना कर पाया है सन् 1953 ई. में उसकी शादी अलीगढ़ से बड़ी धूमधाम से हुई और तीन चार हजार रुपया भी मिला था हमारे साथी जनकाराम जय प्रकाश शर्मा भहोरी निवासी की शादी की कोई आशा नहीं थी माता की कृपा से उनकी भी शादी बड़ी धूमधाम से हुई और योग्य पत्नी मिली।

गायत्री माता की कृपा से रोगियों को स्वास्थ्य लाभ मिला है, यह अनेक रोगियों पर आजमाया है 5-8-1952 में गायत्री प्रचार करने मैथना गया था वहाँ हमारा नाम सुनकर महाशय वेदरामसिंह वर्मा की बहन भी आई हुई थी उनको प्रसूत का रोग पड़ता था उनको दस-दस बार दौरा होता था डॉक्टर और हकीमों ने उसको लाइजाल कर छोड़ दिया था। हमसे उसकी चिकित्सा करने को कहा गया, मैंने उसकी चिकित्सा आरम्भ की गायत्री मंत्र से मंत्रित जल सुबह और शाम पिलाया करता था। माता की कृपा से 15-8-1952 ई. में उसे पूर्ण आराम हो गया था और अब पूर्ण निरोग हैं।

श्री सोराजसिंह कोटा निवासी को प्रमेह रोग हो गया था उसने दिल्ली, मेरठ और बुनलंद शहर आदि में चिकित्सा कराई मगर सिवा निराशा कहीं पर आशा नजर नहीं आई। रोग यहाँ तक बढ़ गया कि चिकित्सक लोगों ने असाध्य करके छोड़ दिया था, फिर उसके ससुर साहब अशोकगढ़ लाये, वहाँ पर भी चिकित्सा कराई गई, कोई फायदा नहीं हुआ। मैं उस समय में ठा. हरपालसिंह के यहाँ आया था। श्री हरपालसिंह वर्मा ने सोराजसिंह को हमें दिखाया था मैंने उसे देखा तो उसकी बहुत बुरी दशा थी बचने की कोई आशा नहीं थी। उनको डॉक्टर टी. बी. बताते थे। मैंने उसकी चिकित्सा आरम्भ की, प्रातःकाल गायत्री मंत्र से पढ़कर जल पिलाया जाता था, और गायत्री चालीसा पाठ और गायत्री मंत्र जाप कराया जाता था, माता की कृपा से वह निरोग हो गये। अब सानन्द हैं और 19-1-52 ई. को अखत्यारपुर से मैंथना जगतपुर आया था, वहाँ पर एक लड़की भूत बाधा में परेशान थी, वहाँ बहुत से चिकित्सक लोग दवाओं की देमार थी मैंने उसे देखा था और सारे शरीर में दर्द हो रहा था मैंने गायत्री मन्त्र से पढ़ जल पिलाया, तो उसे उसी दम आराम हो गया, वह लोग अचम्भे में हो गये थे। और भी अनेक अनुभव हुए हैं।

गायत्री सद्बुद्धि जिस मस्तिष्क में प्रवेश करती है वह अंधानुकरण करना छोड़कर हर प्रश्न पर मौलिक विचार करता है। वह उन चिंता, शोक, दुःख आदि से छुटकारा पा लेता है, जो कुबुद्धि की भ्रान्त धारणाओं के कारण मिलते हैं। संसार में आधे से अधिक दुख कुबुद्धि के कारण हैं, उन्हें गायत्री की सद्बुद्धि जब हटा देती है तो मनुष्य सरलता, शाँति, सन्तोष और प्रसन्नता से परिपूर्ण रहने लगता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118