प्राणघातक संकटों से मुक्ति

July 1954

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(डॉ0 एस॰ सी0 गोस्वामी, मथुरा)

5 वर्ष पूर्व जब मेरी आयु केवल 20 वर्ष की थी विधाता ने ऐसे ऐसे क्रूर आरम्भ किये कि मैं तिलमिला उठा। शब्दों के द्वारा उन स्थितियों को समझाना असम्भव ही है। कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है। पितृ वियोग होने के बाद भी देवता समान श्रेष्ठ भ्राता ने पिता का अभाव न मालूम होने दिया। लेकिन नियति का यह सौभाग्य देखकर भी शायद ईर्ष्या हुई होगी। उसने सर्वगुण सम्पन्न भाई को भी पिता की मृत्यु के कुछ समय पश्चात् ही छीन लिया।

मुसीबतें आती हैं तो चारों ओर से आती हैं। गृहस्थी का भार मेरे कमजोर कन्धों पर आ पड़ा। पिताजी इस जिले के नामी होम्योपैथिक डाक्टरों में थे। उनका स्मृति चिन्ह, उनका दवाखाना कैसे चले? बड़ी विकट समस्याएं सामने थीं। यद्यपि पिताजी की उचित व्यवस्था द्वारा रोटियों का घाटा नहीं था, परन्तु दुनिया में और भी बहुत समस्याएँ ऐसी हैं जिनको हल करना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

कुछ दिन बाद नाना प्रकार की दुश्चिन्ताओं के परिणामस्वरूप मैं भयंकर रोग द्वारा ग्रसित हो गया। रोग का नाम था “टी. बी. ग्लाडस” यानी कण्ठमाला एक एक करके नौ गाँठें बड़ी भयंकर रूप से फूट निकलीं साथ-साथ ज्वर भी रहने लगा। डाक्टरों से पूछने पर बताया गया कि यह सबसे भयंकर किस्म की “कण्ठमाला” है इस रोग में बहुत कम रोगी बचते हैं।

बड़ी विचित्र स्थिति थी। माँ दिन रात रो रोकर जान दिये देती थी। उसका रोना भी उचित था। दो लड़कों में से बड़े लड़के मोटर दुर्घटना से मर चुके, एक मैं बचा हूँ उसे यह राजरोग लग गया। तरह तरह के राय मशवरे चिकित्सा सम्बन्धी दिये गये लेकिन अंत तक यह निश्चय न हुआ कि कौन सी चिकित्सा कराई जाय।

एक दिन चित्त बड़ा दुःखी हो गया, मैं अपने कमरे में लेटा दुःखी होकर रोने लगा, और मन ही मन पिताजी की याद करके दुःखी होने लगा न जाने कब आँख लग गई। स्वप्न में पिताजी ने दर्शन दिए वे मुझे आशीर्वाद देकर बोले बहादुरी से अपनी परिस्थितियों का मुकाबला करो भगवान कल्याण करेंगे। कुछ और भी बातें बताई जिन्हें कारणवश में कहने में असमर्थ हूँ। निद्रा खुल गई घर में सब को मैंने स्वप्न की बात बताई तो सब लोगों ने मेरी बात पर विश्वास न किया।

हालत बजाय सुधरने के दिनों दिन खराब होने लगी अन्त में उनका इलाज बन्द कर दिया। दो एक डाक्टरों की दवा कुछ दिन और की गई पर मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-2 दवा की। किसी ने सलाह दी मृत्युँजय मन्त्र गायत्री का जप करो। बात मन में जम गई।

एक मन होकर गायत्री साधना प्रारम्भ कर दी दो वर्ष की कठिन साधना के बाद मेरा रोग दूर हो गया मैं स्वस्थ हूँ परन्तु एक मानसिक रोग शेष रह गया। अन्त में उस रोग का इलाज बहुत कुछ आचार्य जी पूज्यनीय श्रीयुत श्रीराम शर्मा जी अखण्ड-ज्योति के सम्पादक एवं गायत्री तपोभूमि के अधिष्ठाता ने किया। इनके श्री चरणों की कृपा से मुझे गायत्री माता की महिमा का अनुभव हुआ। तब से मैंने माँ के श्री चरणों में आश्रय ले लिया है एवं भगवती की अनुकम्पा से बड़े-2 कठिन टी. बी. सरीखे रोगियों को अच्छा करने में सफलता प्राप्त कर चुका हूँ एवं अब धीरे-2 यह विश्वास होने लगा है कि माँ के आशीष से मैं अवश्य अपने पिता का नाम और यश फिर से स्थापित करने में सफल हो सकूँगा।


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