(श्री परशुराम जी आर्य, ओवर सीयर)
सबसे पहले यह बताना अच्छा होगा कि मैं कट्टर आर्य समाजी हूँ। हर बात को बुद्धिपूर्वक विवेक तथा तर्क की कसौटी पर कसकर ही स्वीकार करता हूँ। गायत्री की महिमा तथा उसकी उपासना के महत्व को मैं बहुत समय से जानता हूँ। पर जब गायत्री मन्त्र लेखन की साधना का वर्णन अखण्ड-ज्योति में पढ़ा तो उस पर विशेष मनोयोग पूर्वक विचार किया तो लगा कि यह साधना अन्य साधनाओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होगी।
इससे पूर्व भी मैंने श्री स्वामी शिवानन्द जी द्वारा प्रकाशित एक पत्रक में पढ़ा था कि जप की अपेक्षा मन्त्र लेखन का लाभ विशेष है। मन्त्र लेखन की अनेक विशेषताएँ हैं जैसे 1- मन्त्र लिखते समय हाथ, मन, जीभ और आँख चारों एक साथ मंत्र में लग जाने से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। 2- मन्त्र शक्ति से मन वश में होकर नम्र बन जाता है। उससे कोई भी आध्यात्मिक या साँसारिक काम बहुत शीघ्र और अच्छी तरह से करा सकते हैं। 3- मन्त्र या ईश्वर नाम के असंख्य आघात लगने से मन पर चिरस्थायी आध्यात्मिक साधना में शीघ्र प्रगति होती है। 4- किसी प्रकार की मानसिक शान्ति या चिन्ता दूर होकर मन को शान्ति मिलती है। 5-मन्त्र लेखन पुस्तिका में और स्थान में आध्यात्मिक आन्दोलन और शक्ति पैदा होती है जो साँसारिक तथा आध्यात्मिक प्रवृत्तियों में अदृश्य सहायता करती है। 6- मन्त्र योग का यह प्रकार (लेखन) आधुनिक चंचल स्वभाव की जनता के लिए अधिक सिद्धिप्रद है। उनके लिए माला की सहायता से जप करने में चित्त को बाहरी जगत् की वस्तुओं में भटकने से रोकना अति कठिन है। 7-शास्त्रों में बताये गये भिन्न-भिन्न प्रकार के जपों में से मन्त्र लेखन (लिखित जप) सबसे उत्तम है। इससे चित्त की एकाग्रता होती है और क्रमशः ध्यान की स्थिति प्राप्त होती है।
मन्त्र लेखन-लिखित जप-करने की साधना की ऐसी ही अनेक विशेषताएं मुझे सूझ पड़ी और 1-5-53 से गायत्री मन्त्र लेखन की साधना आरम्भ कर दी। और एक वर्ष में 125000 (सवालक्ष) मन्त्र लिखने का एक अनुष्ठान पूर्ण कर लिया। किसी दिन कम किसी दिन ज्यादा लिखा गया है। किसी दिन तो 800 तक लिखे गये। औसत 360 प्रतिदिन लिखने का पड़ा। साधारणतः एक गायत्री मन्त्र लिखने में 1 मिनट लगता है इस प्रकार कोई व्यक्ति यदि 3 घण्टे रोज लेखन साधना करे तो एक वर्ष में पूरी कर सकता है। पर अपनी आरम्भ की शिथिलता को पूरा करने के लिए मुझे तो अन्तिम दिनों में आठ-आठ, दस-दस घण्टे लिखना पड़ा है। मेरे जैसे 60 वर्ष की आयु के व्यक्ति के लिए निस्संदेह इतना श्रम कठिन ही है। पर माता ने ही यह साहस तथा उत्साह दिया जिसके बल पर एक वर्ष में यह अनुष्ठान पूर्ण हो गया। गत चैत्र की नवरात्रि में गायत्री तपोभूमि में आकर इस लेखन का दशाँश 12500 आहुत का हवन मैंने कर दिया।
एक वर्ष की इस तपश्चर्या का अनुभव इतना मधुर है कि गूँगे के गुं़डडडडडड की तरह इसका लाभ बता सकना कठिन है। स्वयं अनुभव करके इस मार्ग पर चलकर ही इस प्रकार की तपस्या के लाभों को जानना और अनुभव किया जा सकता है। यों गायत्री उपासक मैं बहुत समय से हूँ। गायत्री जप और अग्निहोत्र मेरा नित्यकर्म हैं। उसी के प्रताप से अनेक बाधाएँ पार की हैं और इस समय भी सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। मेरे दूसरे साथी जबकि 60 वर्ष की आयु में जीर्ण शीर्ण हो चुके हैं तब भी मैं अभी तक युवा पुरुष की तरह श्रम करने योग्य अपने स्वास्थ्य को पाता हूँ। आध्यात्मिक सफलताओं की तो चर्चा न करना ही ठीक है।
भौतिक या दुनियावी लाभ की एक जीती जागती बात आपके सामने पेश करता हूँ :-
मैं 1-11-48 के 5 वर्ष आयु पूरी हो जाने पर रिटायर्ड हुआ। राजकीय कार्य के लिए ऐसे मनुष्य को लेना मना है फिर भी कुछ रियायत 58 वर्ष की आयु तक की जा सकती है और साठ के पश्चात तो कतई असम्भव है।
मैं 53 के आरम्भ में अर्थात् 59 वर्ष की आयु में सरकार से एक ओवर सीयरी की जगह के लिए प्रार्थना की जो उन्होंने अस्वीकार कर दी। कोई आशा न रखते हुए भी एक वर्ष पीछे फिर प्रार्थना की अर्थात् जबकि मैं पूरा 60 का हो चुका पर इस मर्तबा मुझे इन्टरव्यू के लिये 16-6-54 को बुलाया गया। इंटरव्यू पूरी तरह से सफल रहा और अब राजस्थान में पुनः सरकारी सर्विस पर नियुक्त हुआ हूँ।
अपने अन्य साथियों से भी मेरी यह प्रार्थना निरन्तर रहती हैं कि वे गायत्री मन्त्र की लिखित साधना अवश्य करें। यह साधना का एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रकार है।