गायत्री उपासना से प्रेतबाधा की निवृत्ति

July 1954

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री भोगालाल मोहनलाल जानी, मोटा चेखला)

गत वर्ष मैंने सवालक्ष गायत्री का अनुष्ठान किया था। वेदोक्त संध्या, स्नान, जप सब तीनों काल होती थी। पन्द्रह दिन के बाद रात को मैं सो रहा था अर्ध जागृत नींद में था उस वक्त 12-1 बजे मेरे कमरे में से एक अति भयानक श्याम आकृति का अर्धअंग दिखाई पड़ा, जिसका हाथ लम्बा होने लगा मेरी ओर आने लगा, लम्बा हुआ, हाथ ने मेरा गला जोर से दबाया, मुझे बड़ी परेशानी हुई मैं घबराने लगा उस काली आकृति के हाथ को जोर से पकड़ कर वेद माता का मंत्र शुरू कर दिया, आश्चर्य की बात यह हुई कि जप शुरू करते ही श्याम मनुष्य आकृति अदृश्य हो गई। जिसके बाद ऐसी कोई विघ्न की घटना बनी नहीं है। हमारे घर में जो प्रेत बाधा बहुत दिनों से घुसी हुई थी वही प्रेत इस अनुष्ठान से कुद्ध होकर हमें डराना चाहता था पर गायत्री उपासना की शक्ति के आगे उसका कुछ बस न चल सका। रात्रि को सफेद प्रकाश, सफेद वस्त्र में पुरुष और पदार्थ स्वप्न में दिखाई देते थे। 40 दिन में अनुष्ठान समाप्त हो गया। आखिरी दिन अन्तिम रात्रि को चार बजे 12-14 वर्ष की बालिका का स्वप्न में दर्शन हुआ। उस बालिका ने हमें शक्कर का प्रसाद देकर चली गई। प्रसाद हाथ में लिया और आँख खुल गई। ऐसी घटना अनुष्ठान काल में हुई थी। दूसरे दिन ब्रह्मभोज करवाया, पुरश्चरण समाप्त हो गया।

साधना से एक बड़ा लाभ यह हुआ कि मेरी औरत जो 10 साल से प्रेतबाधा से पीड़ित थी। प्रतिदिन जोर-जोर से रोती थी एक-एक घण्टा तक रोती रहती, गाँव के सारे लोग जमा हो जाते थे। हाथ पैर भी खिंचा जाता था। जोर भी बहुत करती मैंने विद्वान ब्राह्मण से उसका उपाय पूछा लेकिन वे न बता सके। इधर-उधर से ताबीज धागा लाकर बाँधता पर उनसे कोई लाभ न होता। हम तीनों को बड़ी परेशानी रहती थी। मैंने गायत्री अनुष्ठान शुरू किया तो उस दरमियान ही पीड़ा बन्द हो गई।

मेरा गाँव साबर काँठा जिले में घड़ी नामक है। तालुका प्राँतिज है। मैं गुजराती स्कूल में अध्यापक की नौकरी करता हूँ। मेरी उम्र 31 साल की है। कुटुम्ब में पिताजी गुजर गये हैं, माता वृद्ध हैं। हम तीन भाई हैं और तीन बहनें। घर पर खेती का धंधा चलता है। मैं जाती से मोढ़ चातुर्वेदिय ब्राह्मण हूँ, मैंने गुजराती, प्राथमिक शालाँत परीक्षा उत्तीर्ण की है, हिन्दी की भी तीन किताब पढ़ी हैं।

गायत्री साधना से हमारी आध्यात्मिक उन्नति बढ़ती है। साधन बढ़ाने की भी तमन्ना होती है। हमें कार्य में सफलता भी मिली है। भय, शोक, क्रोध, लोभ, मोह वगैरह दुर्गुण कम होते हैं। पुण्य पुरुषों की प्राप्ति होती है। सत्, संन्यासी, ब्रह्मचारियों का मिलन कभी-कभी होता है। मैं जिधर जाता हूँ वहाँ के लोग बड़े प्रेम से आदर करते हैं- हमारी पाठशाला में कैसा कोई भी इंस्पेक्टर साहब आता है लेकिन मेरी क्लास में आते ही शाँत हो जाता हैं और मेरे कार्य की प्रशंसा करता है। जन समाज पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। आज भी वेद माता का स्मरण करता हूँ। साधन से लाभ की अपेक्षा रखता नहीं हूँ इस साल में चांद्रायण की साधना करने की इच्छा है फिर माता की इच्छा।

मैं एक दफा भजन में गया था, भजन शुरू होने लगे। थोड़ी देर पीछे एक बनिये की लड़की को अंग में प्रेत आ गया और उठकर दौड़ने लगी। वह जाती थी रास्ते के बीच में गिर पड़ी उसे कुछ ज्ञान न रहा। भजन में आने वाले लोग जमा हो गये बेचारी लड़की हैरान हो रही थी कोई उपाय मालूम न पड़ा। थोड़ी देर सोचकर मैंने शुद्ध जलपात्र मँगवाया गायत्री मंत्र से मंत्रित किया और उसकी आँखों में छिड़कने लगा थोड़ी ही देर में प्रेत चला गया। लड़की शुद्धि में आ गई और घर पर चली गई। एक वक्त अभिमंत्रित जल पिलाने से भी ऐसा ही आराम हुआ था। इस प्रसंग से मेरी श्रद्धा और बढ़ी।

गायत्री साहित्य में मैंने पहली बार गायत्री के प्रत्यक्ष चमत्कार किताब पढ़ी, इसके पीछे सब साहित्य मथुरा से मँगवाया। अखण्ड-ज्योति का सदस्य भी बना हूँ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118