गायत्री एक अमोघ अस्त्र

July 1954

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(श्री रामचन्द्र प्रसाद, दानापुर केन्ट)

गायत्री की महिमा अपार है, वेद शास्त्रों ने जगह-जगह वेदमाता की स्तुति की है। ऋषियों ने ऋषितत्व देवताओं ने देवतत्व गायत्री से ही प्राप्त किये हैं। कामनाओं की सिद्धि के लिये पहले ऋषि महर्षि भिन्न भिन्न प्रकार से प्रयोग करते थे। हजारों प्रकार के विधान हमारे पूर्वजों को मालूम थे। यज्ञ वेदी से द्रौपदी को प्रगट करना उन दिनों साधारण बात थी, हम लोग आलस्यवश उन अमूल्य विधानों, प्रयोगों को भूल गये हैं। शुक्राचार्य ने यज्ञ द्वारा ऐसी शक्ति राजा बलि को प्राप्त करा दी, कि उनके आगे इन्द्र भी नहीं ठहर सके। जब तक आर्य जाति माता की आराधना करती रही, धन जन शक्ति से भरी रही। आज वेदमाता को भूलकर हम लोग पददलित हो रहे हैं। घर-घर में असंतोष, अभाव और अशक्ति की आग सुलग रही है।

पूर्व काल में औरों की तो बात ही क्या, स्वयं भगवान राम और कृष्ण भी गायत्री आराधना करते थे। उस समय गायत्री का त्याग बहुत बड़ा समझा जाता था। फलतः उस समय देश कैसा उन्नत था। अन्न, धन, दूध, घी आदि की कमी न थी। जब से हम लोगों ने माता की अवहेलना की दीन हीन कंगाल होते गये। अगर अब भी हम लोग पूर्वजों के बताये मार्ग पर चलें, तो फिर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकते हैं, अकाल महामारी संकट आदि से मुक्ति पा सकते हैं। भगवान कृष्ण ने महाभारत के अश्वमेध पर्व में गायत्री की बड़ी महिमा गाई है, यथा :-

“जो प्रतिदिन सुबह शाम को विधिवत संध्योपासना करते हैं, वे वेदमयी नौका का सहारा लेकर इस संसार समुद्र से स्वयं तर जाते हैं, और दूसरों को भी तार देते हैं। जो ब्राह्मण सबको पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री देवी का जप करता है, वह समुद्र पर्यन्त पृथ्वी का दान लेने पर भी प्रतिग्रह के दोष से दुःखी नहीं होता, तथा सूर्य आदि ग्रहों में से जो उसके लिए अशुभ स्थान में रहकर अनिष्ट होते हैं वे भी गायत्री जप के प्रभाव से शान्त, शुभ और कल्याणकारी हो जाते हैं। जहाँ कहीं क्रूर कर्म करने वाले भयंकर पिशाच रहते हैं, वहाँ जाने पर भी वे उस ब्राह्मण का अनिष्ट नहीं कर सकते। वैदिक व्रतों का आचरण करने वाले पुरुष पृथ्वी पर दूसरों को पवित्र करने वाले होते हैं। प्रजापति मनु का कहना है, शील, स्वाध्याय, दान, शौच, कोमलता और सरलता ये सद्गुण ब्राह्मण के लिये वेद से भी बढ़कर हैं। जो ब्राह्मण भूर्भुवः स्वः इन व्याहृतियों के साथ गायत्री का जप करता है, वेद के स्वाध्याय में संलग्न रहता और अपनी ही स्त्री से प्रेम करता है, वही जितेन्द्रिय, वहीं विद्वान और वही इस भू मण्डल का देवता है। जो प्रतिदिन सन्ध्योपासना करते हैं, वे निःसन्देह ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं। केवल गायत्री मात्र जानने वाला ब्राह्मण भी यदि नियम से रहता हो तो वह श्रेष्ठ है। किन्तु जो चारों वेदों का विद्वान होने पर भी सबका अन्न खाता, सब कुछ बेचता और नियमों का पालन नहीं करता, वह उत्तम नहीं माना जाता।

पूर्व काल में देवता और ऋषियों ने ब्रह्माजी के सामने गायत्री मन्त्र और चारों वेदों को तराजू पर रख कर तौला था। उस समय गायत्री का पलड़ा ही चारों वेदों से भारी साबित हुआ। जैसे भ्रमर खिले हुए फूलों से उनके सारभूत मधु को ग्रहण करते हैं उसी प्रकार सम्पूर्ण वेदों से उनकी सारभूत गायत्री को ग्रहण किया गया है। इसलिए गायत्री सम्पूर्ण वेदों का प्राण कहलाती है। गायत्री के बिना सभी वेद निर्जीव हैं। नियम और सदाचार से भ्रष्ट ब्राह्मण चारों वेदों का विद्वान हो तो भी वह निन्दा का ही पात्र है, किन्तु शील और सदाचार से युक्त ब्राह्मण यदि केवल गायत्री जप करता हो तो भी वह श्रेष्ठ माना जाता है। प्रतिदिन 1000 गायत्री मन्त्र का जप करना उत्तम है, सौ मन्त्र का जप करना कनिष्ठ माना गया है। कुन्ती नन्दन गायत्री सब प्राणों को नष्ट करने वाली है, इसलिये तुम सदा उसका जप करते रहो।

महाभारत आश्वमेधिक पर्व से उद्धत गायत्री मन्त्र में ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की गई है, सद्बुद्धि के बिना धन, वैभव, शक्ति आदि सभी निष्फल हैं। जिन्हें सद्बुद्धि प्राप्त है, उन्हें किसी बात की कमी नहीं रहती, रोग, शोक, दुःख, दारिद्र आदि उसे परेशान नहीं कर सकते। गायत्री वह सतोगुणी शक्ति है, जो साधकों को बलात् पशुतत्व से ऊपर उठाकर देवतत्व की ओर ले जाती है। इन्हीं सब बातों को विचारकर और लाभों को देखकर ऋषि महर्षि ने गायत्री उपासना पर बहुत जोर दिया है, और त्यागने वाले की निन्दा की है। ऋषियों का अनुभव और विश्वास है, कि अगर केवल गायत्री को भी द्विज अपनाये रहेंगे तो धन, जन और आत्मबल से परिपूर्ण रहेंगे। उन्हें कुछ भी अप्राप्त न रहेगा।

हमारे कई मित्र उपासना में संलग्न हैं, उनके कुछ अनुभव पाठकों के लाभार्थ लिख रहे हैं राम सेवक सिंह वैद्य छितगाँव निवासी की लड़की आठ साल पूर्व आग से बुरी तरह जल गई थी, शरीर जल जाने से पीड़ा से बेचैन थी। खबर पाकर राम सेवक सिंह अपनी लड़की को देखने गये। उस समय लड़की बेहोश थी। घरवालों ने कहा कि सावधानी न की जाती तो वह जल मरती फिर भी हाल चिन्ताजनक है। रामसेवक सिंह ने जाकर देखा कि लड़की के कई अंग जल गये हैं, और वह बेहोश है। यह देखकर वह बहुत दुःखी हुए और माता का स्मरण ध्यान करते हुए अनिमन्त्रित हस्त से स्पर्श किया। आठ दस मिनट में लड़की ने आंखें खोल दी और कहा बाबूजी अब जलन पीड़ा बहुत कम हो गई है, और शीतलता अनुभव कर रहीं हूँ। मरणासन्न लड़की में यह चमत्कारी परिवर्तन देखकर लड़की के पिता को प्रसन्नता हुई। माता की दयालुता देखकर उनका हृदय भर आया उन्होंने कहा “बेटी तुम जल्दी ही अच्छी हो जाओगी, चिन्ता न करो”। वह लड़की शीघ्र अच्छी हो गयी।

अभी 4-5 मास की बात है, राम सेवक सिंह जी की स्त्री ने पुत्र प्रसव किया, बाद बच्चा और उसकी स्त्री बीमार हो गई। बच्चे की हालत बिगड़ती गई। दो तीन मास के शिशु की चिकित्सा कराई गई थी, एक दिन बच्चे की नाड़ी आदि बन्द हो गई और मृत्यु का लक्षण प्रकट होने लगा। दवादारु से निराश हुए रामसेवक सिंह ने माता की शरण ली। बच्चे को गोद में लेकर अपने पूजा स्थान पर चले आये और माता का ध्यान करके कहा यह आपकी दी हुई धरोहर है, आपकी इच्छा हो तो रहने दीजिए या बुला दीजिये। यह बात कह ही रहे थे कि बच्चा जो कि बदहालत में था, एकाएक हँस पड़ा। उसे हँसते देख सभी आश्चर्यचकित हुए, औरतें मृत्यु का लक्षण समझ रोने लगीं, लेकिन रामसेवक सिंह ने कहा कि माता ने मेरी पुकार सुनली है, अब बच्चा नहीं मरेगा”। बाद में धीरे-धीरे बच्चा अच्छा हो गया और अभी तक अच्छा है।

मनराम साँव मेरे मित्र हैं, उनका घर भरोली गाँव में (जो जिला आजमगढ़ में पड़ता है) है, उनके मौसेरे भाई चन्द्रिका प्रसाद को दो साल हुये न जाने क्या हुआ वे अर्ध विक्षिप्त हो गये, साथ ही खाँसी और पेशाब की बीमारी भी उन्हें हो गई थी। दवा दारु भी किया गया, ओझा स्याने को दिखाया भी गया, लेकिन अच्छा न हो सका, कोई बीमारी बताता, कोई भूत प्रेत का प्रकोप बताता, उनके अभिभावक 1 साल से अधिक इससे परेशान रहे, बहुत खर्च भी किया, लेकिन हालत वैसी ही रही। मनराम साँव सम्वत् 2009 में नवरात्रि करने दानापुर से अपने घर आजमगढ़ आये। परिवार के लोगों ने चन्द्रिका प्रसाद की हालत मनराम से कहा मनराम ने अपने मौसेरे भाई को नवरात्रि में अभिमन्त्रित जल पिलाते थे, और मनराम के समीप ही वे भी जप थोड़ा बहुत करते थे। पूर्णाहुति के बाद चन्द्रिका प्रसाद रोग मुक्त हो गये, खाँसी आदि भी ठीक हो गई।

भाई मनराम ने गायत्री मन्त्र द्वारा बहुत से रोगियों को अच्छा किया है, विस्तारमय से नहीं लिखते। दानापुर निवासी पं0 त्रिवेणी पाण्डेय के सुयोग्य पुत्र पं0 भोलानाथ पाण्डेय मेरे मित्र हैं, डेढ़ साल से गायत्री उपासना में संलग्न हैं, सवा लाख के दो अनुष्ठान भी कर चुके हैं।

सम्वत् 2010 आषाढ़ महीना में भोलानाथ जी की बहिन की शादी थी। समय पर बारात आयी, भोज का इन्तजाम घर में जगह कम होने से बाहर किया गया था। पंच लोग सब पंक्ति में भोजन करने बैठे तो वृष्टि होने लगी। अब तो पं0 भोलानाथ जी और उनके पिता भारी फेर में पड़े। पण्डित भोलानाथ जी अपने पिता और भाई को देख−रेख करते रहने को कहकर स्वयं पूजा स्थान पर चले गये और 1-1॥ घण्टा वृष्टि रुक जाये ऐसी प्रार्थना भगवती से करके, गायत्री मन्त्र जपने लगे। लगभग 1 माला जप किया होगा कि वर्षा रुक गई। बरात में आए हुए लोग यह देख कर दंग रह गये, और सभी पं0 भोलानाथ जी की प्रशंसा करने लगे। सभी ने प्रसन्न चित्त से भोजन किए पान-सुपारी लेकर जब बिदा हुए तो कुछ देर बाद पुनः वृष्टि होने लगी, और बहुत देर तक होती रही। पण्डित भोलानाथजी का इस घटना से माता के प्रति श्रद्धा विश्वास पहले की अपेक्षा बढ़ गया।

पं. भोलानाथ जी पाण्डेय के मामा पं0 रामधनी पाण्डेय सम्वत् 2011 चैत्र शुक्ल पक्ष में मुजफ्फरपुर के गाँव में अपने यजमान के यहाँ रात को ठहरे हुए थे, उस यजमान से गाँव में ही किसी से दुश्मनी चल रही थी। पं0 धनीरामजी रात को सोये हुये थे, उनका यजमान जो कि जमींदार था पास ही वह भी सोया हुआ था। अर्ध रात्रि के लगभग कुछ आदमी हथियारों से लैस होकर वहाँ पहुँचे, और रामधनी के यजमान को सोता देखकर बगल में भाला मारा, भाला लगते ही वह चिल्ला उठा, रामधनी पाण्डेय भी आवाज सुनकर जाग गये। डाकू भेष में आये हुए लोगों ने इन्हें जागते देखकर अपने साथियों से पूछा यह बगल में कौन सोया हुआ है, साथी ने कहा यह परदेशी पण्डित जी हैं, दूसरे डाकू ने कहा इसने हम लोगों को देख लिया है इसे मारो, डाकुओं ने पण्डितजी को मारने के लिये भाला उठाया, मारने को उद्यत देख कर पं0 धनीरामजी की बुद्धि ठिकाने न रही वह गायत्री उपासना करते थे, जोर-जोर से माता-माता चिल्लाने लगे। इसे सुनकर डाकू ने कहा, माता-माता चिल्ला रहा है मारो साले को, इतना सुनते ही दूसरे साथी ने जोर से भाले का वार किया। लेकिन धन्य है, गायत्री देवी, जोर से चलाया हुआ भाला ओठ पर जरा सा चिन्ह देते हुए निष्फल गया। पं0 रामधनी बाल-बाल बच गये।


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