विवेक वचनावली
तन कौ जोगी सब करै, मन कौ करै न कोय। सब सिधि सहिजै पाइये, जो मन जोगी होय॥
राम बुलावा भेजिया, कबिरा दीना रोय। जो सुख प्रेमी संग में, सो बैकुण्ठ न होय॥
भाव भाव की सिद्धि है, भाव भाव में मेल। जो मानों तो देव है, नाहिं मानो तो डेल॥
डर उछाव हित धरम सौं, असुभ करम की हानि। मन प्रसन्न रुचि अन्न सौं, ज्यों ज्वर छूटैं जानि॥
गावन में रोवन अहै, रोवन में ही राग। एक रागी ही में, एक ग्रही वैराग॥
सिद्ध होत कारज सबै, जाके जिस विश्वास। पूजत ऐपन कौ हथा, तिय जिय पूरै आस॥
जो पै जैसो होय तेहि, तैसो ही मिल ताय। मिलै गठकटा चोर कों, साह हि साह मिलाय॥