(श्री रामेश्वर जी, उरई)
मेरे एक मित्र के कथनानुसार हम दोनों मावौगढ़ गये। वहाँ पर पं0 छोटे लाल से वार्तालाप हुआ। उन्होंने बतलाया कि प्रतिदिन 11 माला जपकर 100 दिन गायत्री 1 लक्ष जप करो तुम्हारी मनोकामना सिद्ध होगी। लौटकर हमने प्रतिदिन 3000 के हिसाब से जप करना प्रारम्भ किया किन्तु हमारा जप 2-2 से अधिक न चल सका क्योंकि हम लोगों के सिर में दर्द होने लगा। यह सब अगस्त 1953 के अन्तिम सप्ताह में हुआ।
सितम्बर में मेरे मन में अरुण वर्ग पहेली की पूर्ति भेजने की स्फुरणा हुई तथा मैंने तीन वर्ग भेजे। माता की कृपा से प्रथम प्रयास में ही पहेली का प्रथम पुरस्कार मिला।