महाशक्ति की समीपता

July 1954

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(डॉ. जे. निगम, कानपुर)

बहुत समय से मैं गायत्री उपासना में लगा हुआ हूँ। मेरी साधना जिस गति से बढ़ती है उसी अनुपात से मुझे माता की कृपा के अनेकों अनुभव भी होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई शक्ति मेरे चारों ओर भरी हुई है और वह मुझे निरन्तर प्रेरणा एवं पथ प्रदर्शन प्रदान करती है। अनेकों व्यक्ति मुझसे अनेकों अज्ञात बातें पूछने आते हैं उन्हें ऐसा विश्वास है कि मुझे कोई विशेष सिद्धि प्राप्त है। कारण कि बताई हुई प्रायः सभी बातें सही निकलती हैं और जिसे जो कार्य बता देते हैं वह उनके लिए सफलता प्रदान करने वाला ही बन जाता है।

कोई विशेष साधना सिद्धि मैं नहीं जानता गायत्री ही मेरा इष्ट है। इसी की जो कुछ साधना बन पड़ती है करता रहता हूँ। इससे मुझे ऐसा प्रतीत होता रहता है कि कोई महान शक्ति हर घड़ी साथ-साथ फिरती है और उसकी सहायता समय पर आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

बहुधा अनेक व्यक्तियों को छोटी मोटी सहायताएं इस महाशक्ति द्वारा पहुँचाता रहता हूँ। अपने घर परिवार में भी ऐसे ही अनुभव होते हैं। अपने परिवार के अभी हाल के ही अनुभव पाठकों के सामने प्रस्तुत करता हूँ। उन्हीं से अन्य ऐसी ही घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है।

1-चन्द महीना हुआ जब कि मेरी स्त्री के बच्चा हुआ था वह जब मायके से मेरे यहाँ पर आई और उसी दरमियान मैंने नवदुर्गा का अनुष्ठान करके हवन सुबह को कर रहा था। उसको भी हवन के पास बैठने को कहा तो वह कहने पर चारपाई से उठकर मेरे हवन में न आकर कहा जाड़ा है, हम लेटे हैं उसी वक्त मेरे जबान से निकल गया, जाओ पड़ी रहो उसी दिन से सख्त बीमार हो गई। हर प्रकार का इलाज किया गया मगर लाभ न हुआ। तब मैंने गायत्री जी का हवन करके उसको हवन के पास बैठाकर के पूजा की तो उसी दिन से वह अच्छी होने लगी और बिना हमारे पिता ऋणग्रस्त होने के कारण साधारण कच्चे देहाती बनावट के मकानों में रहते थे और मकान जरूरत से ज्यादा टूटे फूटे छोड़कर स्वर्गवासी हो गये थे। मैं भी ऋण भार के कारण उन्हीं में गुजर करता रहा। पर सन् 1991-92 से कुछ माता की कृपा हो जाने के कारण हर बातों में हर कामों की वृद्धि होने लगी। मकान बनाने की इच्छा हुई और सन् 1994 में पक्का मकान सादा बनाना चाहा पर अनायास मुझे कुछ मालूम ही नहीं पड़ा और करीब 3 हजार रुपया के खर्चे से इतना बड़ा दुहरा (दो मंजिल) मकान बना कि इस वक्त यदि बनाया जाय तो 25 हजार रुपया की लागत से बनेगा जो मेरी हैसियत से बाहर बन गया है।

मुझे सन् 1991 में बीमारी जो हुई थी वह इतनी जबरदस्त थी कि सब ही ने मेरा अखीर समझ लिया था। पर उस परमपिता की कृपा से बच गया और भी छूट पुट कई दुश्मनों ने अकारण के झगड़े तैयार किये पर उस गायत्री माता की कृपा से सब ही को मुँह की खानी पड़ी। सत्य की विजय होती है ऐसा मैंने आजमा कर देखा। अब सरकार ने मालगुजारी ले ली है सिर्फ काश्तकारी बची है। मेरी मालगुजारी के वक्त काश्तकार 16 एकड़ जमीन का सिर्फ 75) रु0 में बेदखल हो गया, और मैंने जमीन पर कब्जा ले लिया। इसके बाद उस जमीन के खरीददार खड़े हो गये। एक हजार रुपया में 16 एकड़ जमीन माँगने लगे। उस परम पिता ने मुझे प्रेरणा दी कि मैंने अपनी खुशी से उस जमीन में से 5 एकड़ जमीन रखकर बाकी 11 एकड़ जमीन उस काश्तकार को वापिस कर उसके लड़के के नाम पट्टा लिखकर दे दिया। रुपया का लालच न किया, निदान कुछ दिन बाद वही 5 एकड़ जमीन मेरे पास से 1200) रुपये में बिक गई। इस प्रकार गायत्री माता की उपासना के फलस्वरूप मेरी अनेकों कठिनाई हल होती गई हैं और सुविधाएँ बढ़ी हैं। शेष जीवन की कठिनाइयों को भी वे इसी प्रकार पार कर देंगी, ऐसी आशा है।


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