जान माल की भयंकर क्षति से बचे

July 1954

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(श्री जसवन्त सिंह राजाबल, पीपलू)

कुछ समय से हम कई मित्र गायत्री उपासना में लगे हुए हैं। हम लोगों की जैसी कुछ टूटी फूटी साधना है उसके हिसाब से देखा जाय तो हम लोगों को माता का सहारा भी सन्तोषप्रद मिल रहा है। गत वर्ष गर्मियों में तो हम लोग एक भारी दुर्घटना तथा जान-माल की भयंकर क्षति से बाल-बाल बच गये। रक्षा में गायत्री माता की कृपा ही प्रधान कारण थी।

गत गर्मी की छुट्टियों में मैं व शम्भू सिंह जी हमारे बहुकुटुम्ब सहित सीताबाड़ी के मेले में गये। एक तो मुझे दो बैल बेचने थे दूसरे सब सीताबाड़ी पवित्र स्थान को देखना व स्नान करना चाहते थे। रास्ते में रेलावन ग्राम की पार्वती नदी की ररक में हमारी असली गाड़ी जिसमें औरत समाज बैठा हुआ था, बैल के नीची गर्दन कर देने के कारण गैल में ही रुक गई। दौड़ बहुत ही भयानक व संकरी थी। पीछे वाली गाड़ी भी चलती दौड़ में दौड़ी, उस वक्त तक गाड़ी दौड़ चुकने पर हमें पिछली गाड़ी वालों की आवाज द्वारा मालूम हुआ कि दौड़ में गाड़ी रुकी हुई है। पर अब क्या हो सकता था। मैं दोनों गाड़ियों के बीच में बन्दूक लेकर चल रहा था। पर अब मैं भी क्या कर सकता था। इस प्रकार गाड़ीवान के जोर से बैलों की रास खींचने के कारण एक बैल पीछे पूठ पर गाड़ी का धक्का जोर से लगने के कारण अगली गाड़ी के आने से पहले ही गड़ार में गिर पड़ा व उठ गया व फिर गिर पड़ा व वह बैल अपने सींग के बल ऐसा पड़ा कि सारी गाड़ी भी उसी पर आ गई। आस-पास की भीड़ में हाहाकार मच गया जो गाड़ियाँ वहाँ पर रुकी हुई आराम कर रहे थे उनमें हमारा औरत समाज भी रोने लग गया क्योंकि दोनों गाड़ियों में 8 बच्चे 5 साल तक की उम्र के थे। अतः मेरे भी होश गुम हो गये। मैंने एकदम अपने आपको सम्हाल कर के अपना कन्धा गाड़ी के पहिये से लगा दिया। कुँ0 शम्भु सिंह जी अपने हाथ में एक 4 वर्षीय बालक को लेकर जल्दी से कूद पड़े। मेरे मामा श्री मदन सिंह जी बहाली बगैरा ने उस बैल को खींचकर निकाला उस नये बैल का एक सींग पूर्णतया टूटा हुआ था वह देखकर हमें और भी अधिक दुःख हुआ क्योंकि उसे 1 महीने पहिले ही हमारे बड़े मामा ने 200) में मोल लिया था। सींग को वापस मिलाकर भगवती का नाम लेकर बाँध दिया। आज तक ऐसे सींग जुड़े हुए नहीं सुने थे पर यह सींग तो केवल स्प्रिट डालते रहने से ही अच्छा हो गया वह बैल आराम से हमारे मामा के कास्त में काम आ रहा है।

दूसरी घटना वापस आते समय रात के वक्त रास्ते में चोरों से मुठभेड़ हुई। उस समय भी भगवती का स्मरण करने से साक्षात बचाव हुआ, न मालूम क्यों वह खाँस कर ही रह गया और उसने कोई छेड़-छाड़ नहीं की इसे भी माता का ही प्रसाद समझता हूँ। फिर वापस उसी नदी रेलावन ग्राम में आने पर कुंए पर पानी पीते हुए रवाना होकर वहाँ पर 1000) की दोनाली नं0 12 बन्दूक भूलकर 1 मील चले जाने के पश्चात बन्दूक की भूल आने की याद आई। उसी गर्मी के समय में दिन के 2 बजे मैवहाली मामा का लड़का विजेन्द्र सिंह भागते हुए गये। मुझे निराशा व आशा कि विचारों ने खूब खिलाया भुलाया पर निश्चित स्थान पर पहुँचने पर माता की कृपा का प्रसाद तैयार मिला। उस बन्दूक की एक भले पुरुष ने सब ग्राम के मौजिज आदमियों को इकट्ठा करके उठाया था क्यों कि उसे यह मालूम था कि फला ग्राम के वासियों की यह चीज है, पर हम उसे नहीं जानते थे। इस प्रकार से 1000) का नुकसान भगवती की कृपा से बचा व साथ में सरकार के नियमों से बचे अन्यथा दुनाली बन्दूक खो जाने पर सरकार खैंचातान करती। इसके उपलक्ष में ग्राम आते ही ब्रह्मभोज मेरे बड़े मामा ने किया व हवन भी करवाया इसके बाद अर्धांगिनी का इलाज कम पैसा में ही दवाइयाँ व इन्जेक्शन के द्वारा हुआ। इस प्रकार छोटी मोटी घटनाएं तो कितनी ही हैं। जिनमें माता की सहायता अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त हुई। 10 भैंसे, बाबा साहब की 8, व 2 मेरी 5 दिन बाद मिली।


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