एक ब्रह्मनिष्ठ तपस्वी

July 1951

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(श्री सरयू शरण गुप्त, नवाबगंज)

जिनकी दृष्टि संकुचित और प्रज्ञा मलीन होती है वे धन, भोग, यश आदि की कामना करते हैं और उसकी की उधेड़ बुन में नर तन जैसे अमूल्य अवसर को गंवा देते हैं। परन्तु भगवान जिन्हें दूर दृष्टि, स्वच्छ प्रज्ञा और तात्विक ज्ञान देते हैं वे मनुष्य जीवन की महानता को समझते हैं और उसका सदुपयोग करके जन्म मरण की फाँसी काटने का प्रयत्न करते हैं।

जैसे कोई मनुष्य चाहे अपने लाभ के लिए ही दीपक जलाता हो तो भी उस दीपक का प्रकाश दूर तक होता है और उस स्थान के अनेक व्यक्तियों को प्रकाश मिलता है। अपने लिए यज्ञ किया जाय तो भी उससे आकाश की शुद्धि वायु होकर जल वर्षा आदि के लाभ असंख्य प्राणियों को मिलते हैं। इसी प्रकार आत्म कल्याण के लिए जो परमार्थिक कार्य किये जाते हैं उससे अपना कल्याण तो होता ही जाता है साथ ही अन्य अनेकों का भी हित साधन होता है

नवाबगंज के निकट सरयू तट पर लगभग 25 वर्ष से एक महात्मा तप कर रहे हैं। इनका नाम तो पं॰ बलभद्र जी है पर नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का पालन करने का आरम्भ से ही व्रत धारण करने के कारण उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता है अब वे ब्रह्मचारी के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। इन महात्मा का संक्षिप्त सा परिचय नीचे की पंक्तियों में उपस्थित किया जाता है।

ब्रह्मचारी जी संस्कृत भाषा के उत्कृष्ट विद्वान हैं उन्होंने प्रारम्भिक जीवन में ही पूर्व संचित शुभ संस्कारों के कारण यह जान लिया था कि मनुष्य जीवन का सच्चा लाभ क्या है? और उस लाभ को प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग क्या हो सकता? उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गायत्री माता आश्रय लिया है क्योंकि सृष्टि के आदि से लेकर अब तक प्रायः सभी वेदानुयायी साधक गायत्री के आधार पर ही तप करके परम पद के अधिकारी बने हैं।

अपनी राज तुल्य सम्पत्ति में लात मार कर ब्रह्मचारी जी ने सरयू तट पर एक छोटी सी कुटी में गायत्री तप का महान अनुष्ठान कर रहे हैं। अब तक वे 24 करोड़ से अधिक जप कर चुके हैं। पहले वे सर्वथा मौन रहते थे, कुछ समय तक उन्होंने दिन में मौन रखने का नियम रखा। वे नित्य प्रति यज्ञ करते हैं। गत वर्ष एक सज्जन ने अपने संतति सुख के उपलक्ष में प्रति पूर्णमासी को एक बड़ा यज्ञ करते रहने की व्यवस्था कर दी थी और त्रिशक्तियों के लिए उपयुक्त वस्त्र परिधान भी दान किया था। ब्रह्मचारी जी मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को हर साल तीन कन्याओं का वस्त्र भोजन आदि से पूजन करते हैं।

इन पच्चीस वर्षों से उन्हें जो महान आत्मिक लाभ हुआ है। उस संबन्ध में कुछ प्रकाश डालना ब्रह्मचारी जी को अभीष्ट नहीं है इसलिए उस संबन्ध में कुछ भी नहीं लिखा जा रहा है। फिर भी स्थानीय लोगों को उनके प्रति अगाध श्रद्धा है क्योंकि ऐसे तपोनिष्ठ महात्मा आसानी से दृष्टिगोचर नहीं होते।

कुछ वर्ष पूर्व इधर दूर-दूर स्थानों तक चेचक तथा हैजा रोमाँचकारी प्रकोप हुआ था पर जो लोग ब्रह्मचारी की छाया में रहते थे वे सपरिवार उस आपत्ति से अछूते रहे। इसी प्रकार गत वर्ष जल प्रवाह की प्रलय तुल्य दशा होने पर भी ब्रह्मचारी जी का आश्रय लेने वाले लोग समस्त आपदाओं से रक्षित रहे हैं। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर अनेकों लोगों ने गायत्री उपासना का व्रत लिया हुआ है। मैंने भी उन्हीं से गायत्री उपदेश लिया और यथाशक्ति उस कल्याण मार्ग पर चल रहा हूँ।

स्वर्गीय लाला राम सहाय जी की धर्मपत्नी के हृदय में अपने पति देव का स्मारक बनाने के लिए इस गायत्री तीर्थ को सुन्दर बनाने की प्रेरणा हुई। उनने अपने धन का परम सात्विक उपयोग यह किया है कि पूज्य ब्रह्मचारी के निवास स्थान पर गायत्री यज्ञ, शाला, कूप, तथा वृक्षारोपण किया है जिसका समारोह इसी साल माघ सुदी 5 को अखण्ड कीर्तन के साथ समारोहपूर्वक सम्पन्न हुआ था।

गायत्री उपासना में जो लोग लगे हैं उनमें से अनेकों को आत्मिक लाभ के अतिरिक्त साँसारिक लाभ भी मिले हैं। एक सज्जन जेलखाने के दण्ड से सर्वथा छूट गये। एक सज्जन ने बड़ी प्रतिकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी पर्याप्त लाभ कमाया है। एक सज्जन की कन्या विवाह की चिन्ता बड़ी सरलता से हल हो गई। ब्रह्मचारी जी चिन्ता बड़ी सरलता से हल हो गई। ब्रह्मचारी जी अक्सर कहा करते हैं कि जितनी निष्ठा एवं श्रद्धापूर्ण हृदय से जगज्जननी की उपासना की जायगी उसका उतने ही परिणाम में सुमधुर तथा चिरस्थाई परिणाम प्राप्त होगा। यह कहने सुनने नहीं करके देखने की बात है।


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