गुप्त शक्ति-भण्डार की कुँजी

July 1951

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(श्री रामदास विष्णु पाटिल, सावदा)

सृष्टि के आदि काल से जिन महात्माओं ने तपश्चर्या एवं योग साधना की है उनने ‘गायत्री’ को आधार रखा है। सम्पूर्ण आध्यात्मिक तत्वों की चाबी गायत्री है। इसके बिना आत्म सिद्धि का ताला खुल नहीं सकता। कितने ही ऋषि-मुनि राम, कृष्ण, शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, दुर्गा, सूर्य आदि को इष्ट मानकर उन्हें प्रसन्न करके शक्ति प्राप्त करने के लिए योग साधना करते रहे हैं कितनों ने निराकार ब्रह्म की उपासना की है। परन्तु हर एक को ‘गायत्री’ का प्रथम आश्रय अवश्य लेना पड़ा है। बिना गायत्री के कोई भी तप या साधन सफल नहीं हो सकता।

शास्त्र का वचन है -

अस्य कस्यापि मंत्रस्य पुरश्चरण्माभेत।

व्याहति त्रय संयुक्ता गायत्री चायुतं जपेत॥

नृसिहार्क बराहाणाँ कौला ताँत्रिका तथा॥

बिना जप्त्वातु गायत्री तर्त्सब निष्फलं भवेत॥

अर्थात्-चाहे किसी भी मंत्र का साधन किया जाय पर उस मन्त्र को व्याहृति समेत गायत्री के साथ जपना चाहिए। चाहे नृसिंह, सूर्य बाराह आदि की उपासना हो या धाम मार्ग के कौल तंत्रिका प्रयोग किये जाय बिना गायत्री को आगे लिए वे सभी निष्फल होते हैं।

गायत्री चारों वेदों की माता है। उसके बिना वेदोक्त दक्षिण मार्गी साधनाएं सफल नहीं होती साथ ही ताँत्रिक, कौल अवधूत, कापालिक, अधीर आदि के वाम मार्ग में जिस शक्ति की आवश्यकता पड़ती है उसका मूल उद्गम भी गायत्री ही है बिना गायत्री के जिन सावर मन्त्रों को लोग सिद्ध करते हैं वे क्षणिक चमत्कार दिखा कर शक्ति हीन हो जाते हैं जिनके मूल में ठोस शक्ति होगी वही सफलता देर तक ठहरेगी और कठिन कार्यों को भी पूरा करेगी। गायत्री से रहित मंत्र चिरस्थायी और तीव्र शक्ति सम्पन्न नहीं होते, उनके लिए किया गया श्रम बहुत कम लाभ दे पाता है।

प्राचीन इतिहास पुराणों से पता चलता है कि सभी प्रमुख ऋषि महर्षि गायत्री के आधार ही पर योग साधना और तपश्चर्या करते थे। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है- “गायत्री छंद सामहम्” अर्थात्- गायत्री मैं ही हूँ। भगवान की उपासना के लिए गायत्री से बड़ा और कोई मंत्र नहीं हो सकता।

वशिष्ठ, याज्ञवल्क, अत्रि, विश्वामित्र, भरद्वाज, नारद, कपिल, कणादि, गौतम, व्यास, शुकदेव, दधीचि, बाल्मीक, च्यवन, शंख, लोमस, तैत्तरेय, जावालि, उद्दालक, वैशम्पायन, दुर्वासा, परशुराम, पुलिस्त, दृत्तात्रेय, अगस्त, सनत्कुमार, कन्ध, शौनक आदि ऋषियों ने विस्तृत जीवन चरित्र लिखकर इस लेख में यह बताने को स्थान नहीं कि उन्होंने वेदमाता की उपासना करके किस प्रकार परम सिद्धि प्राप्त की थी और गायत्री की शक्ति द्वारा वे कितनी महान् सफलताएँ सम्पादित कर सके थे। इतिहास पुराणों के ज्ञाताओं से इन महर्षियों के चरित्र छिपे नहीं हैं।

ऋषियों के अतिरिक्त साधारण गृहस्थ, वानप्रस्थी, ब्रह्मचारी, पंडित, राजा, व्यवसायी आदि सभी प्राणियों के लोगों को गायत्री द्वारा श्रेय मार्ग की प्राप्ति हुई है। राजा जनक ब्रह्मविद्या के पारंगत थे, उनसे शिक्षा लेने के लिए शुकदेव जैसे महात्मा भी जाते थे। माता सबकी है उस महाशक्ति के समीप जो कोई जाता है वही ब्रह्म रूप हो जाता है। अग्नि में पड़ने से साधारण लकड़ी पत्ते, घास पात भी अग्नि रूप हो जाते हैं।

थोड़े ही समय पूर्व अनेक ऐसे महात्मा हुए हैं जिनने गायत्री का आश्रय लेकर अपनी प्रतिभा को प्रकाशित किया। उनके इष्ट देव, आदर्श सिद्धान्त मित्र रहे हों पर वेदमाता के प्रति सभी की अनन्य श्रद्धा थी, उन्होंने प्रारम्भिक कुच पान इसी महाशक्ति का किया था जिससे वे इतने प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष बन सके। शंकराचार्य, समर्थ गुरु रामदास, नरसी महंत, दाढू दयाल, संत ज्ञानेश्वर, स्वामी रामानन्द, गोरखनाथ, मछीन्द्रनाथ, हरिदास, तुलसीदास, रामानुजाचार्य, माध्वाचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रामतीर्थ, योगी अरविन्द, महर्षि रमण, गौराँग महाप्रभु, स्वामी दयानन्द, महात्मा एकरसानन्द जी आदि प्रातः स्मरणीय महात्मा का आत्मिक विकास इस महाशक्ति के आँचल में ही हुआ था।

वर्तमान काल में तीर्थ स्वरूप शरीर धारण किये हुए अनेक महात्मा, जिनमें से कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात स्थानों में तप कर रहे हैं, गायत्री की अनन्य श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं महात्मा गान्धी, महामना मालवीय, कवीन्द्र रवीन्द्र टी.सुवाराव, सर राधाकृष्णन, जगद्गुरु शंकराचार्य, स्वामी शिवानन्द आदि महापुरुषों ने गायत्री की महानता के संबंध में अपने जो उद्गार प्रकट किये हैं वह बहुत ही विचार पूर्ण और मनन योग्य हैं। अखण्ड ज्योति संचालक आचार्य द्वारा गायत्री का जो असाधारण प्रकाश हुआ वह तो आश्चर्यजनक है।

अनेक महात्मा भूत काल में गायत्री द्वारा असाधारण सिद्धियाँ प्राप्त कर चुके हैं और आज भी प्राप्त कर रहे हैं जो शास्त्र मर्म के ज्ञाता हैं भारतीय योग विद्या से परिचित हैं, उन सभी साधकों की आराधना में गायत्री का प्रारम्भिक स्थान है फिर चाहे उसके इष्ट देव एवं विशेष साधन विधान कुछ भी क्यों न हो। आरम्भ से योग विद्या की प्रमुख सड़क गायत्री रही है अन्तः तक और कोई मार्ग ऐसा नहीं मिल सकेगा जो गायत्री से अधिक सीधा, सरल स्वल्प साध्य और निश्चित सफलता प्रदान करने वाला है। गायत्री की नौका पर सवार होकर ही। भव सागर को तैरा जा सकता है। गृही और विरागी दोनों को ही यह गायत्री रूपी कामधेनु समान स्नेह से अपना पथ पान कराती है। दोनों ही उसकी कृपा से अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।


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