साधना के पथ पर

July 1951

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(पं॰ राधेमोहन मिश्र, बहरायव)

मेरी प्रवृत्ति अपनी बाल्यावस्था से ही आध्यात्मवाद की ओर रही। मुझे ऐसे मित्र तथा मार्ग प्रदर्शन मिलते गये जिससे और सहायता मिलती गयी। घर में अपने वयोवृद्धों को गुरुमंत्र जपते देखा करता, जब मेरा यज्ञोपवीत संस्कार हुआ मुझे गायत्री मंत्र दिया गया, मैं उसे अपना गुरुमंत्र जानकर यदा-कदा जपा करता, जब कभी रात्रि में कहीं जाना पड़ता अथवा संकट में पड़ जाता तो भयभीत अवस्था में गायत्री मंत्र की शरण में जाने से मुझे वह शक्ति अनुभव होता और भय दूर हो जाता था। धीरे-धीरे मंत्र पर दृढ़ विश्वास होने लगा।

मैं एक साधारण मनुष्य हूँ, इस मंत्र के जप के प्रभाव से और गुरुदेव के आशीर्वाद से इस संकट काल एवं चरम सीमा पर पहुँची हुई महँगाई के समय में न जाने कहाँ से व्यय पूरा हो रहा है मुझे स्वयं आश्चर्य होता है। दो बार जप करने के लिये माला उठाते ही उसे बिखरा हुआ पाया। यह मेरे लिये खतरे की घण्टी थी। मैं दो बार कठिन रोग से पीड़ित हुआ। मुझे अपनी बीमारी में जरा भी भय मालूम नहीं हुआ। और आन्तरिक स्फूर्ति का अनुभव होता था। मैं मन में ही गायत्री मंत्र का जप किया करता, धीरे-धीरे रोग से छुटकारा मिल गया। अब तो श्री आचार्य जी द्वारा खोज पूर्ण लिखित गायत्री महाविज्ञान नामक पुस्तक के आधार पर गायत्री साधना कर रहा हूँ इसके द्वारा मुझे पूर्ण सहायता मिल रही है। मेरे एक मित्र को गायत्री मंत्र के सवा लक्ष के अनुष्ठान से पुत्र रत्न का लाभ हुआ और एक दूसरे मित्र ने गायत्री माता की शरण में जाने से मृत्यु के मुख से अपने पुत्र को बचा लिया।


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