गायत्री महिमा का प्रत्यक्ष दर्शन

July 1951

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(श्री नयन सिंह वर्मा, वसन्तपुर)

चार पाँच महीने की बात है उत्तराखण्ड की तीर्थ यात्रा से घूमते हुये जागेश्वर से श्री 108 श्री दूधाधारी बाबाजी महाराज हमारे गाँव वसन्तपुर अल्मोड़ा) पधारे। आप नित्य त्रिकाल स्नान, ध्यान, हवन, यज्ञ, गायत्री जप करते हैं। एक बार फलादार या दुग्धाहार तथा बोरे ही पहनते व ओढ़ते हैं जिस दिन आप यहाँ आये उस समय आपके पास केवल 2 सेर हविष्य सामग्री थी, शहर अल्मोड़ा दूर होने के कारण उस सामग्री का यहाँ मिलना भी दुर्लभ था, तिल की खेती होने को तैयार थी परन्तु उन दिनों बिल्कुल ही समाप्त थी। परन्तु गायत्री का चमत्कार देखिये आप सात दिनों तक यहाँ रहे, प्रतिदिन 3 बार 2 सेर सामग्री का हवन किया और जाने के आठवें दिन भी आपके पास उतनी ही सामग्री थी जितनी आने के दिन थी। एक दिन बातों को प्रसंग में ही एक भक्त ने कहा कि महाराज आज ककड़ी नहीं आई बाबा जी बोले अभी आ जायगी। ठीक दो मिनट के बाद एक भक्त ककड़ी लेकर एक भक्त उपस्थित हो गया। जिसके आने की सम्भावना ही नहीं थी। इसी प्रकार की अन्य घटनाएं भी घटित हुईं। उस दिन हम लोगों ने प्रत्यक्ष देखा कि गायत्री वास्तव में कामधेनु ही है।


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