(श्री धर्मपाल सिंह जी, कासिमपुर)
मेरी बुआ जी अशिक्षित थीं, पर वे नियमित रूप संध्या करती थीं। फूफा जी ने एक 2 शब्द करके उन्हें सब मंत्र याद कराये थे। बुआ जी को इस प्रकार संध्या करते देखकर मेरे मन में बड़ा उत्साह हुआ। उन दिनों 10-11 वर्ष का ही था। संध्या सिखाने की बुआ जी से प्रार्थना की तो उनने गायत्री मंत्र सिखा दिया और कहा-यही मंत्र सबसे बड़ा है, तुम अभी इसी को जपा करो। बड़े होने पर सारी संध्या याद करना।
जैसी धार्मिक बुआ जी थी वैसे ही फूफा जी थे। विद्याध्ययन के लिए मुझे उनके यहाँ रहने का अवसर मिला। उनके विचार और कार्य इतने उच्च कोटि के थे कि उनसे लाभ उठाने के लिए अनेकों व्यक्ति हर समय उनके पास घिरे रहते थे। मुझे भी उनके द्वारा जो विचार और संस्कार प्राप्त हुए उन्हीं के कारण आध्यात्मिकता की ओर मेरी प्रवृत्ति बढ़ी।
पढ़ाई समाप्त करके सरकारी नौकरी में आया। गायत्री मेरे साधन का केन्द्र-बिन्दु रहा। उसी की कृपा से स्वाध्याय और सत्संग के अलभ्य अवसर प्राप्त होते रहे। सत्पुरुषों की ऐसी अहैतु की कृपा उपलब्ध हुई कि मेरी आत्मिक यात्रा आगे ही बढ़ती चली।
आचार्य जी के आदेशानुसार 24 लक्ष जप का आरम्भ किया, एक समय भोजन को व्रत लेकर संयम नियम के साथ वह उपासना चलने लगी। गंगा की बड़ी नहर के किनारे माता का जप करने में बड़ा आनन्द अनुभव होता।
इस अभियान साधना के बीच अचानक दिसम्बर के अन्त और जनवरी के आरम्भिक सप्ताहों में एक अद्भुत घटना घटी। शरीर यकायक दुर्बल हो गया। हाथ पाँचों की उंगलियों से ठंडी फुहार निकलना आरम्भ हो गई। देह में शिथिलता आ गई और कुछ दिव्य अलौकिकता का अनुभव होने लगा। शरीर, इन्द्रिय मन, बुद्धि में एक विशेष प्रकार की चेतनता का प्रकाश मिलता था। बुद्धि में सतोगुण के प्राबल्य से चैतन्य आत्मा का प्रकाश अधिक बढ़ रहा था। बुद्धि के स्वच्छता से अनेक आध्यात्मिक गूढ़ रहस्यों का अनुभव आन्तरिक स्फुरण से ही होने लगा। सर्वत्र सब कुछ प्रभु ही प्रभु ऐसी विराट पुरुष की झाँकी तीव्र भावना से दिन में, रात्रि में, कई घंटों को हो जाती थी। इन सब अनुभवों ने मुझे भविष्य में निश्चित और निर्मल रहने का पाठ भली प्रकार पढ़ा दिया।
आत्मा में दैवी प्रकाश बढ़ने का अनुभव बिल्कुल प्रत्यक्ष रूप से हो चुका है अब मैं सब कामनाएं त्यागकर आनन्दकन्द की प्राप्ति के लिए गायत्री द्वारा चित्त शुद्ध करके अपनी मूक वाणी में हर समय प्रार्थना करता हूँ और शरीर को कर्त्तव्य धर्म में लगाये रहता हूँ। माता मुझे पार करेंगी इस बात में अब किसी प्रकार का संदेह नहीं रह गया है। गायत्री के भक्त सदा से पार होते आये हैं, विश्वास है कि माता मुझे भी डूबने न देगी।