हरि ॐ तत् सत्

July 1951

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(पं॰ बिहारीलाल जी त्रिवेदी, राजगढ़)

सृष्टि के आदि काल में भागीरथ जी उग्र तप करके तरण तारिणी गंगा को भूलोक में लाये थे। वर्तमान समय में भी एक एकान्त सेवी महात्मा वैसा ही प्रवास कर रहे हैं। नाम इनका भी भागीरथ जी है मानसिक विषय विकारों की अग्नि में जलने वाली मनु संतति, को शान्तिदायक ज्ञान गंगा में स्नान कराने का व्रत इन महात्मा ने किया हुआ है॥

जन्म नाम इनका पं॰ भागीरथ जी है। पर इनका वाह्य कलेवर भी अन्तरात्मा की भाँति ही ब्रह्ममय हो गया है। वाणी से ब्राह्मी शिक्षा और दैवी प्रवचन उद्भूत होते हैं इसलिए इन्हें महात्मा हरि ॐ तत् सत् कहते हैं। इसी नाम से अब ये मध्य भारत में विख्यात हैं।

राजगढ़ के राज्य पूजित वंश में इन महापुरुष का जन्म हुआ है काशी जी में संस्कृत की, साथ ही वह शिक्षा भी प्राप्त की जिसे पाने पर और कुछ उपलब्ध करना शेष नहीं रह जाता। आध्यात्मिक पुरुषार्थों में तप सब से बड़ा, विवेक, त्याग और आत्म दमन का आवश्यकता होती है। कोई विरले ही शूरवीर इस पथ पर पर्दा पण करते हैं। प्राणों को हथेली पर रखकर समुद्र तल घुसने का साहस जिसमें होता है वही मोती पाने का सौभाग्य प्राप्त करता है।

महात्मा हरि ॐ तत् सत् गत 22 वर्ष से उपवास पूर्वक तप करते हैं। इतने समय से उन्होंने अन्न ग्रास नहीं उठाया। थोड़ा सा दूध और फल लेकर वे शरीर को धारण किये रहने योग्य शक्ति प्राप्त करते हैं। और निरन्तर गायत्री द्वारा आत्म साक्षात्कार करने की साधना में तल्लीन रहते हैं। नेत्रों से उन्हें नहीं दीखता, पर दिव्य नेत्र इतने प्रदीप्त हैं कि उन्हें मनुष्य के छिपे हुए अन्तस्तल को देखने में देर नहीं लगती। रात्रि के 10 बजे से लेकर दिन के 12 बजे तक 24 घंटों उनका मौन रहता है 10 घंटे के लिए उनकी वाणी खुलती है, तब उससे अमृतमय परमार्थिक प्रवचन की निसृत होते हैं।

साँसारिक कामना वाले स्वार्थी लोग उनके तप से अनुचित लाभ न उठाने लग जाएं इसलिए अपनी आत्मिक सफलताओं को उन्होंने सर्वथा गुप्त ही रखा है परन्तु वे लोगों को आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए अपने सम्पूर्ण ज्ञान सम्पत्ति सदा ही बखेरते रहते हैं उनसे प्रकाश पाकर अनेकों भूले-भटके लोगों ने सच्चा रास्ता पाया है। अनेकों ने नरक से निकल कर स्वर्ग की है। रामायण गीता घर घर प्रचार इस क्षेत्र में उन्हीं से प्रयत्न हुआ है। राजगढ़ की सड़कों पर छोटे-छोटे बच्चे अपनी तोतली बोली में रामायण की चौपाई गाते हुए सुने जा सकते हैं और माताएं चलो चलाते हुए गीता के श्लोक बोलती है। चैत्र में रामायण के अवसर पर हर साल एक प्रभाव शाली पक्ष होता है जिससे अनेक आत्माओं को भागीरथ जी द्वारा आमंत्रित ज्ञान गड्ढा का रसा स्वादन करने का सौभाग्य मिलता है।

यदि आत्मा परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त कर लो तो परमात्मा ही बन जाती है। हरि ॐ तत् सत् परमात्मा का सुन्दर नाम है। इस नाम से हम सब इन महात्मा जी को पुकारते क्योंकि उनकी निर्मल आत्मा अपने शुद्ध स्वच्छ परमात्मा के समीप ही पहुँच चुकी है।


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