गायत्री साधना में मेरी प्रवृत्ति

July 1951

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(पं॰ सूर्यदेव शर्मा वानप्रस्थी, मानिकपुर)

जब मैं 46 की अवस्था में पहुँचा तब मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि मेरे पूर्वज लोग 45 से 50 वर्ष की आयु में ही स्वर्ग वासी हो गये हैं, अब मुझे भी लगभग उसी आयु में इस संसार को त्यागना पड़ेगा। मेरे पिता जी पूर्व में मुझ से कहते थे कि जो ब्राह्मण संध्या गायत्री से वंचित रहता है वह शूद्र के तुल्य होता है। इससे मैं प्रथम की साध्यों पालन तथा गायत्री 108 बार जपा करता था परन्तु इस विचार धारा में पड़ने से मेरा चित्त इस तरफ विशेष रूप से झुका। ग्रन्थावलोकन करने से भी गायत्री देवी की महिमा बहुत बड़ी प्रतीत हुई। एक सुदिन निश्चित कर मैंने प्रथमतः पूर्वार्जित पाप का प्रायश्चित विधानोक्त किया। शास्त्रों में यह विधान आया है कि सवा लाख गायत्री जपने तथा हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन कराने से इस जन्म के पातक उपपातक तथा महापातक नष्ट हो जाते हैं।

इन सब बातों को समझबूझ कर मैं नियमित से रूप किसी माह में तीन हजार प्रति दिवस तथा किसी माह में चार हजार प्रति दिवस जप करना आरम्भ कर दिया। उस समय मैं प्रचुर कष्टों से वेष्टित था कतिपय ग्रामीण सज्जन तथा और लोग मेरा अनिष्ट करने पर दिलोजान से उतारू थे। परन्तु इसकी उपासना करने से दिनों दिन उपासना करके वे लोग स्वयं ही शान्त हो गये तथा उन लोगों की यह विचार धारा मेरे प्रति प्रेम में परिणित हो गई, मुझे प्रतीत हुआ कि मेरी सब बुराइयाँ गायत्री देवी की कृपा से दूर हो गयी। जो कुछ भी जप मैंने किया सो सब निष्काम भाव से ही किया सकाम भाव से नहीं। सकाम भाव में साधना करने से साधकों को निश्चित पदार्थ ही मिलता है न कि दुष्प्राप्य वस्तु।

अधुना में वानप्रस्थ आश्रम में हूँ गायत्री उपासना के कुछ ही दिनों के पश्चात् मेरी बुद्धि और स्वभाव में परिवर्तन हो गया जिससे मेरे हर्ष की सीमा न रही। धन्य गायत्री माता की कृपा उन्हीं की कृपा से मेरे उद्धार होने की सम्भावना है। सात्विक आचार विचार तथा आहार व्यवहार से साधकों को विशेष लाभ होने की आशा है मुझे भी ऐसा ही हुआ।

पहले मैं गृहस्थ आश्रम में था। तो खटाई, मिठाई, तेल नमक छोड़ा। आमवाद, गठिया होने पर वैद्यों ने राय दी तो थोड़ा सा सैन्धानमक लो। 11 वर्ष के बाद खाना शुरू किया, मगर जब मैं गृहस्थ आश्रम छोड़कर वानप्रस्थ आश्रम में आया तो तरकारी में मसाला और पकवान खाना छोड़ दिया उबली हुई तरकारी और भात रोटी खाने लगा। मसाला छोड़ने से मुझे गर्मी की कमी मालूम हुई दूसरे मन भी स्थिर हो गया। 5 वर्ष पकवान भी नहीं खाया। बगैर मसाला पड़ी तरकारी उसी जी ही खाता हूँ। गायत्री उपासना और सात्विक भोजन के फल स्वरूप में आमवात गठिया रोग से भी मुक्त हो गया और आजकल पूर्ण स्वास्थ्य और सुखी जीवन व्यतीत करता हूँ। इस समय वानप्रस्थ में समय व्यतीत कर रहा हूँ।


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