गायत्री उपासना से काम विजय

July 1951

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री रामचन्द्र जी महेन्द्रिकर, हैदराबाद)

आत्मकल्याण के साधक को उसकी प्राप्ति के मार्ग में सब से अधिक रोड़ा है तो यह काम है। काम विजय के बिना आत्म साक्षात्कार सम्भव नहीं हो सकता। काम को वश कर सर्वोत्तम दृष्टि प्राप्त करने के लिये अनेक साधन हैं। पर उन सब साधकों में गायत्री सर्वश्रेष्ठ है।

गायत्री की उपासना के प्रथम रूप में मातृरूप है, जिसमें सभी दिव्यताएं मौजूद हैं, करने पर अल्प समय में ही सब स्त्रियों में मातृभाव उत्पन्न होने लग जाता है जिससे कर्मरूपी शत्रु का दमन और सर्वात्म भाव का मार्ग खुल जाता है ।

अब इस मार्ग में प्रगति शीघ्र होने में बाधा नहीं रहती। धीरे-धीरे साधक की दृष्टि विशाल होने लगती है। गायत्री माता का साक्षात्कार केवल स्त्रियों में ही नहीं अपितु प्राणी मात्र में होने लगता है। सब में उसको उसकी अनुभूति होने लगती है। मानवता का ध्येय साध्य होने में गायत्री उपासना ही मेरे विचार में सर्वश्रेष्ठ है।

नित्य प्रातः और सायं संध्या-समय एकान्त में मन एकाग्र कर गायत्री माता के रूप में स्थूल रूप से ध्यान करें। उसमें सत्चित् और आनन्द का आरोप करें। उसकी सर्व व्यापकता, सर्व शक्ति मानत्व का अनुभव कर ध्यान करें। सभी स्त्रियों को गायत्री माता के रूप में देखें। उनके शरीर, मन और बुद्धि का प्रकाश गायत्री माँ ही है। सो विचार दृढ़ करता जाए। इस प्रकार धीरे धीरे पर तीव्र अभ्यास से दृष्टि विशाल होती है। बुद्धि में प्रकाश की प्राप्ति है। ईर्ष्या, द्वेष, वैरत्व हिंसा का समूल उच्छेद होता है। सब चराचर में उसी ‘माँ’ को दिव्य झाँकी होने लगती है।

अन्य साधनों से भी यह लाभ हो सकता है, परन्तु जितना शीघ्र कामवासना का त्याग गायत्री साधना से होता है, अन्य साधनों से नहीं होता यह मेरा विश्वास है।

अतः जो अधिक काम वासना का स्थान शीघ्र करना चाहता हो वह गायत्री की साधना करे तो वह अपना ध्येय शीघ्र प्राप्त कर लेगा। यह पंक्तियाँ में किसी पढ़े सुने आधार पर नहीं कहता वरन् अपनी गायत्री उपासना में अनुभव के आधार पर उपलब्ध हुए सुदृढ़ विश्वास को प्रकट कर रहा हूँ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles